
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने संपत्ति में बेटियों के अधिकारों पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी हिंदू पिता की मृत्यु 9 सितंबर 1956 से पहले हुई थी, तो बेटी उनकी संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा नहीं कर सकती है। यह इसलिए है क्योंकि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, जिसके तहत बेटियों को संपत्ति में अधिकार मिले, वह 1956 में लागू हुआ था। हाईकोर्ट ने बताया कि इस कानून से पहले के विरासत के मामले ‘मिताक्षरा कानून’ के पुराने पारंपरिक नियमों के अनुसार तय किए जाते थे।
संपत्ति विवाद का पुराना मामला
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में एक पुराना संपत्ति विवाद का मामला सामने आया है। रगमानिया ने यह विवाद 2005 में तब शुरू किया जब उन्होंने सिविल कोर्ट में एक केस दायर करके अपने पिता सुधिन की संपत्ति में बंटवारा और मालिकाना हक़ माँगा। यह ध्यान देने वाली बात है कि उनके पिता सुधिन की मृत्यु लगभग 55 साल पहले, 1950-51 में ही हो गई थी।
अदालत की दलील
निचली अदालत और उसके बाद अपील कोर्ट ने रगमानिया की याचिका को इस दलील के साथ खारिज कर दिया था कि उनके पिता की मृत्यु 1956 के कानून के लागू होने से पहले हो गई थी। इसलिए, यह कानून उन पर लागू नहीं होता है। जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास ने 13 अक्टूबर को दिए अपने फैसले में भी निचली अदालत के इसी रुख को सही ठहराया था।
पैतृक संपत्ति का नियम
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों (2020 और 2022) का हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया है कि कानून के अनुसार, अगर साल 1956 से पहले ‘मिताक्षरा कानून’ को मानने वाले किसी हिंदू पुरुष की मृत्यु हुई थी, तो उसकी पैतृक संपत्ति पर पूरा अधिकार केवल बेटे को मिलेगा।
बेटे को मिलेगा पूरा हक़
यह मामला सुधिन नामक व्यक्ति की संपत्ति से जुड़ा है, जिनकी मृत्यु साल 1956 से पहले हुई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उनकी खुद की कमाई हुई संपत्ति नकी मृत्यु के बाद पूरी तरह से उनके बेटे बैगादास को ट्रांसफर होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों ने इस मामले में कानून का सही तरीके से पालन किया है।
बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
साल 2024 में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था कि अगर पिता की मृत्यु 1956 से पहले हुई हो, तो बेटी का उनकी संपत्ति पर कोई कानूनी दावा नहीं बनता है। हालाँकि, साल 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया था कि यदि पिता का कोई पुत्र (कानूनी वारिस) नहीं है, तो उनकी संपत्ति बेटों के बजाय बेटियों को ही विरासत में मिलेगी। यह फैसला बेटियों के संपत्ति अधिकारों को मज़बूती देता है।








