
नैनीताल। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के एक फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की है। यह फैसला 2013 और 2014 में 48 गैर-अनुसूचित जातियों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने से संबंधित था। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार (गृह, कानून और समाज कल्याण व अधिकारिता मंत्रालय के सचिवों) और उत्तराखंड के प्रमुख सचिव समाज कल्याण को नोटिस जारी किया है। इन सभी से चार सप्ताह में जवाब मांगा गया है। मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी को होगी।
राज्य सरकार के शासनादेश को चुनौती
हाई कोर्ट में 5 दिसंबर को मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने हरिद्वार की मीनू द्वारा दायर की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई की। इस याचिका में 2013-14 में तत्कालीन प्रमुख सचिव समाज कल्याण द्वारा जारी किए गए एक शासनादेश को चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 341 के अनुसार, किसी भी जाति को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का अधिकार केवल राष्ट्रपति और संसद के पास है। याचिका में हाई कोर्ट से राज्य में संवैधानिक व्यवस्था को फिर से बहाल करने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया
याचिका में यह भी कहा गया है कि सरकार ने 26 जनवरी 2016 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष न्यायालयों (Special Courts) की स्थापना करने की बात थी। लेकिन, इस आदेश का पालन करते हुए अभी तक इन विशेष न्यायालयों की स्थापना नहीं की गई है।









