
बैंकिंग क्षेत्र में कर्ज देने के नियमों में जल्द ही एक नया बदलाव आने वाला है, जो उधारकर्ताओं के क्रिमिनल रिकॉर्ड की जांच पर भी ध्यान देगा। अभी तक बैंक लोन देते समय क्रेडिट स्कोर, कैश फ्लो और कोलैटरल की जांच करते थे, लेकिन अब बैंकर्स गंभीर अपराधों से जुड़े लोगों को कर्ज देने से रोकने के लिए क्रिमिनल रिकॉर्ड की भी पड़ताल करना चाहते हैं।
क्रिमिनल रिकॉर्ड जांच का मकसद
इस कदम के पीछे मकसद है कि ऐसे उधारकर्ताओं से बचा जाए जिनका क्रिमिनल रिकॉर्ड गंभीर हो और जो ऋण वापसी में दिक्कत पैदा कर सकते हैं। बैंकर्स चाहते हैं कि कर्ज धारकों की यह जानकारी होने से वे पहले से ही जोखिम वाले पोर्टफोलियो से बच सकें और रिकवरी की मुश्किलों से निजात पा सकें।
बैंकर्स के लिए यह कदम क्यों जरूरी?
आज के दौर में कर्ज देने के फैसले क्रेडिट स्कोर और कैश फ्लो आधार पर ही लिए जाते हैं, लेकिन कई बार गंभीर अपराध से जुड़े या वित्तीय धोखाधड़ी के शिकार कर्जदार बैंक की जब्ती कार्रवाई से बच निकलते हैं। ऐसे मामलों में बैंक को नुकसान उठाना पड़ता है। इस नए नियम के जरिए बैंकर्स को उन उधारकर्ताओं को पहचानने में मदद मिलेगी, जो कानूनी रूप से ट्रैक किए गए हैं।
पुराने सिस्टम में क्या बदलाव होगा?
पिछले समय में छोटा या बिना पहचान वाला लोन भी दिया जाता था, जहां बैंकर्स खुद जाकर जानकारी जुटाते थे। बड़े कॉर्पोरेट क्लाइंट्स के मामले में उनकी मार्केट में छवि भी देखी जाती है। लेकिन अब बैंकिंग व्यवस्था को और सख्त बनाने की दिशा में यह नया प्रस्ताव आया है ताकि ऋण वितरण की प्रक्रिया पारदर्शी और सुरक्षित बनी रहे।
कानूनी और डेटा प्रोटेक्शन पहलू
क्रिमिनल रिकॉर्ड की जाँच को लेकर डेटा प्रोटेक्शन और निजता के मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं। बैंकर्स का तर्क है कि अगर यह प्रक्रिया सही नियमों, सहमति और कानून का पालन करते हुए लागू की जाती है तो यह पूरी तरह कानूनी और उचित होगा। इससे बैंक कर्ज वितरण के फैसलों में और अधिक सावधानी बरत सकेंगे।
भविष्य की तैयारी
यह नई नीति लागू होने से बैंकिंग सेक्टर को जोखिम प्रबंधन में मजबूती मिलेगी और आर्थिक तंगी में फंसे बैंक अपने संसाधनों की सुरक्षा कर पाएंगे। इस कदम से कर्ज लेने वालों में भी एक सख्त नियम का प्रभाव पड़ेगा और बाज़ार में भरोसे का माहौल बनेगा।









