अगर आप अपनी निजी ज़मीन को लेकर निश्चिंत रहते हैं की ये जमीन हमेशा के लिए आपकी ही रहेगी या सरकार उसका अधिग्रहण नहीं कर सकती, तो सुप्रीम कोर्ट ने इस भरोसे को और मज़बूत कर दिया है। देश की सर्वोच्च अदालत ने एक हालिया फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि सरकार किसी भी व्यक्ति की संपत्ति को बिना मुआवज़ा दिए और उचित कानूनी प्रक्रिया के बिना अपने कब्ज़े में नहीं ले सकती.

यह फैसला हिमाचल प्रदेश से जुड़े एक ऐतिहासिक मामले में आया है, जहां राज्य सरकार ने एक व्यक्ति की ज़मीन को दशकों पहले सड़क निर्माण के लिए बिना किसी भुगतान और कानूनी प्रक्रिया के अधिग्रहित कर लिया था.
क्या था मामला?
हिमाचल प्रदेश में 1970 के दशक में सड़क बनाने के लिए एक व्यक्ति की ज़मीन का इस्तेमाल कर लिया गया. लेकिन न तो उस व्यक्ति को मुआवजा दिया गया और न ही उससे कोई कानूनी अनुमति ली गई थी. साल 2011 में जब ज़मीन मालिक अदालत गया, तो राज्य सरकार ने यह दलील दी कि बहुत देर से मुकदमा दायर किया गया है और इसलिए उसे खारिज कर देना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को सिरे से खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया कि समय बीत जाने से कोई भी अवैध कब्ज़ा वैध नहीं बन सकता. कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 300-A के तहत किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से सिर्फ तभी वंचित किया जा सकता है जब सरकार किसी विधिसम्मत प्रक्रिया के तहत कार्य करे और उचित मुआवजा दे.
संविधान और पूर्व मामलों का हवाला
कोर्ट ने इस फैसले में Vidya Devi बनाम हिमाचल प्रदेश, Hindustan Petroleum बनाम Darius Chenai, और Wazir Chand केस का उदाहरण देते हुए दोहराया कि जबरन कब्ज़ा, चाहे वो कितने भी साल पहले हुआ हो, असंवैधानिक है और उस पर व्यक्ति को कानूनी राहत मिल सकती है.
कोर्ट के आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि वह ज़मीन मालिकों को चार महीने के भीतर मुआवजा दे. इसके साथ ही मानसिक तनाव और लंबे समय से हुए नुकसान के लिए अतिरिक्त रकम, 2001 से 2013 तक का ब्याज और ₹50,000 कानूनी खर्च के तौर पर अदा करने को कहा.
क्यों है यह फैसला अहम?
यह निर्णय लाखों ज़मीन मालिकों के लिए राहत भरा है, जो सरकारी दखल के डर से चिंतित रहते हैं. यह फैसला यह भी स्पष्ट करता है कि नागरिकों के संपत्ति अधिकार अब भी संविधान के तहत संरक्षित हैं और सरकारें भी मनमानी नहीं कर सकतीं. चाहे समय कितना भी बीत गया हो, न्याय की मांग हमेशा की जा सकती है.