
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि अगर किसी मुस्लिम जोड़े का तलाक होता है, तो दूल्हे को शादी के समय दुल्हन के माता-पिता द्वारा दिए गए सभी तोहफे वापस करने होंगे। जस्टिस संजय करोल और एन.के. सिंह की बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें दूल्हे को तोहफे रखने की अनुमति दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि समाज में आज भी पितृसत्तात्मक भेदभाव (Patriarchal Discrimination) मौजूद है, जिसे ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है।
तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को न्याय
सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 की एक धारा का उल्लेख करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान का लक्ष्य सभी नागरिकों के लिए समानता स्थापित करना है, जो अभी पूरी तरह से हासिल नहीं हो सका है। इसलिए, अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके फैसलों में सामाजिक न्याय को प्राथमिकता मिले, खासकर तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के मामलों में।
तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 का मुख्य उद्देश्य तलाक के बाद मुस्लिम महिलाओं की गरिमा और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह कानून महिलाओं के जीवन के अधिकार (आर्टिकल 21) से जुड़ा हुआ है। बेंच ने ज़ोर देकर कहा कि इस कानून की व्याख्या करते समय समानता, व्यक्तिगत गरिमा और स्वायत्तता जैसे मूल्यों को सबसे ज़्यादा महत्व दिया जाना चाहिए।
महिलाओं के संपत्ति अधिकार पर कोर्ट का अहम नज़रिया
कोर्ट ने यह ज़ोर देकर कहा कि महिलाओं के संपत्ति अधिकारों से जुड़े फैसलों को उनके वास्तविक जीवन के अनुभवों को ध्यान में रखकर लिया जाना चाहिए, खासकर छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ पितृसत्तात्मक भेदभाव अब भी आम है। कोर्ट के अनुसार, कानून की धारा 3 के तहत, एक महिला को शादी से पहले, शादी के दौरान या शादी के बाद अपने रिश्तेदारों, दोस्तों, पति या उसके रिश्तेदारों/दोस्तों से मिली सभी संपत्तियों पर पूरा अधिकार होता है।









