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Property Law: विरासत में मिली संपत्ति अब पैतृक नहीं! पंजाब-हरियाणा HC का बड़ा फैसला, नियम बदल गए

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है: विरासत में मिली संपत्ति अब बच्चों के लिए पैतृक नहीं मानी जाएगी! कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के बाद मिली संपत्ति पिता की स्व-अर्जित संपत्ति होगी। यह निर्णय आपके संपत्ति अधिकारों और विभाजन के नियमों को हमेशा के लिए बदल देगा।

By Pinki Negi

Property Law: विरासत में मिली संपत्ति अब पैतृक नहीं! पंजाब-हरियाणा HC का बड़ा फैसला, नियम बदल गए
Property Law

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसके अनुसार पिता को 1956 के बाद विरासत में मिली संपत्ति को अब पैतृक (Ancestral) संपत्ति नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ऐसी संपत्ति अब पिता की स्व-अर्जित (Self-Acquired) संपत्ति मानी जाएगी। इस फैसले का सबसे बड़ा असर बच्चों के अधिकारों पर पड़ेगा।

मुख्य बातें और नए नियम

  • 1956 के बाद की विरासत पर असर: यह फैसला केवल उन संपत्तियों पर लागू होगा जो किसी पुरुष हिंदू को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 लागू होने के बाद अपने पिता या दादा-परदादा से विरासत में मिली हैं।
  • जन्मसिद्ध अधिकार समाप्त: नए नियम के अनुसार, बच्चों का इस संपत्ति पर जन्म के साथ कोई अधिकार (Birthright) नहीं बनेगा। पहले पैतृक संपत्ति पर बच्चे जन्म लेते ही हिस्सेदार बन जाते थे।
  • पिता का पूर्ण अधिकार: चूंकि संपत्ति अब स्व-अर्जित मानी जाएगी, इसलिए पिता को इसे अपनी मर्जी से बेचने या किसी को भी ट्रांसफर करने का पूरा अधिकार होगा।
  • बच्चों की चुनौती अमान्य: बच्चे इस तरह की बिक्री या हस्तांतरण को कानूनी रूप से चुनौती नहीं दे सकते हैं।

कानून क्यों बदला?

अदालत ने समझाया कि संपत्ति के नियम में यह बदलाव हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के लागू होने के कारण आया है।

1956 से पहले की स्थिति

1956 से पहले की कानूनी व्यवस्था (मिताक्षरा कानून) में, अगर किसी पिता को संपत्ति विरासत में मिलती थी, तो वह स्वतः पैतृक संपत्ति बन जाती थी। इसका मतलब था कि बेटों को उस संपत्ति में जन्म से ही हिस्सेदारी मिल जाती थी।

1956 के बाद की स्थिति

1956 का अधिनियम लागू होने के बाद, उत्तराधिकार जन्म के आधार पर नहीं, बल्कि कानून के आधार पर तय होता है (अधिनियम की धारा 8 के तहत)।

जब किसी पुरुष हिंदू की मृत्यु होती है, तो उसकी संपत्ति उसकी पत्नी, बेटे, बेटी आदि को मिलती है। जब पिता को इस कानून के तहत विरासत मिलती है, तो वह उसकी व्यक्तिगत संपत्ति बन जाती है। इस प्रकार, यह संपत्ति अब पैतृक नहीं रहती और बच्चों को इसे बेचने या ट्रांसफर करने से रोकने का अधिकार नहीं मिलता।

इसका क्या मतलब है?

यह फैसला संपत्ति विवादों को कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इसका सीधा मतलब है कि अगर आपके पिता को 1956 के बाद उनके पूर्वजों से कोई संपत्ति विरासत में मिली है, तो वह उनकी अपनी संपत्ति है और वे उसके मालिक हैं, न कि संयुक्त पैतृक संपत्ति।

यह निर्णय संपत्ति कानून की जटिलताओं को सरल बनाता है और यह बताता है कि समय के साथ कानून कैसे बदलते हैं और कैसे वे हमारे अधिकारों को प्रभावित करते हैं।

Author
Pinki Negi
GyanOK में पिंकी नेगी बतौर न्यूज एडिटर कार्यरत हैं। पत्रकारिता में उन्हें 7 वर्षों से भी ज़्यादा का अनुभव है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत साल 2018 में NVSHQ से की थी, जहाँ उन्होंने शुरुआत में एजुकेशन डेस्क संभाला। इस दौरान पत्रकारिता के क्षेत्र में नए-नए अनुभव लेने के बाद अमर उजाला में अपनी सेवाएं दी। बाद में, वे नेशनल ब्यूरो से जुड़ गईं और संसद से लेकर राजनीति और डिफेंस जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर रिपोर्टिंग की। पिंकी नेगी ने साल 2024 में GyanOK जॉइन किया और तब से GyanOK टीम का हिस्सा हैं।

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