
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ कर दिया है कि मोटर दुर्घटना के मामलों में, पीछे बैठे यात्री (Pillion Rider) को तब तक लापरवाही के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि दुर्घटना में उसके योगदान का कोई ठोस प्रमाण न हो। शीर्ष अदालत ने ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें लापरवाही का हवाला देकर घायल यात्री के मुआवजे में 50% तक की कटौती कर दी गई थी। इस फैसले से अब ऐसे यात्रियों को पूरा मुआवजा मिल सकेगा।
दो गाड़ियों की टक्कर में थर्ड पार्टी को पूरा मुआवजा मिलेगा
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की पीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है कि अगर दो गाड़ियों की टक्कर होती है, तो बाइक या स्कूटर पर बैठे ‘थर्ड पार्टी’ सवारी (पिलियन राइडर) का मामला ‘समग्र लापरवाही’ (Composite Negligence) के अंतर्गत आता है। इसका मतलब है कि पीड़ित व्यक्ति दोनों गलती करने वाली पार्टियों में से किसी से भी अपने नुकसान या चोट का पूरा मुआवजा वसूलने का हकदार है।
सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति को 50% मुआवजा क्यों मिला?
यह मामला यशवंत कृष्णा कुंबर से जुड़ा है, जो 18 अप्रैल 2014 को संकेश्वर से अकीवत जाते समय एक मोटरसाइकिल दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। नागनवर भूमि के पास एक दूसरी मोटरसाइकिल ने उन्हें टक्कर मार दी थी, जिससे उन्हें कई फ्रैक्चर हुए और अंततः उनका दाहिना पैर घुटने के नीचे से काटना पड़ा।
अपीलकर्ता ने ₹25,00,000 के मुआवजे की मांग करते हुए मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) में याचिका दायर की। हालांकि, ट्रिब्यूनल ने यह मानते हुए कि दुर्घटना में दोनों मोटरसाइकिल सवारों की गलती थी (दोनों लापरवाही से गलत साइड पर चल रहे थे), उनकी लापरवाही को 50% माना। इसलिए, MACT ने बीमा कंपनी को केवल निर्धारित मुआवजे का 50% (शुद्ध राशि ₹3,79,075) ही देने का फैसला सुनाया।
मुआवजे से असंतुष्ट वादी पहुँचे सुप्रीम कोर्ट
हाईकोर्ट में अपील करने पर, कोर्ट ने वादी (शिकायतकर्ता) को हुई दुर्घटना में उनकी आंशिक गलती (अंशदायी लापरवाही) के फ़ैसले को तो सही माना, लेकिन उनकी मासिक आय ₹6,000 से बढ़ाकर ₹7,500 कर दी। इसके बाद, 50% की कटौती करने के बाद हाईकोर्ट ने वादी को कुल ₹6,36,875 का मुआवजा देने का आदेश दिया। इस मुआवजे की रकम से संतुष्ट न होकर, वादी ने आगे सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है।
दुर्घटना मुआवजा मामले में वकीलों के तर्क
अपीलकर्ता (याचिकाकर्ता) के वकील श्री मंजूनाथ मेलेड ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को दिया गया मुआवजा पर्याप्त नहीं है, क्योंकि उनकी उम्र, किसान होने का पेशा और पैर काटे जाने (Amputation) के कारण हुई स्थायी विकलांगता को देखते हुए कार्यात्मक विकलांगता को 100% माना जाना चाहिए था।
उन्होंने यह भी कहा कि पीछे बैठे यात्री (पिलियन राइडर) पर दुर्घटना के लिए आंशिक दोष (अंशदायी लापरवाही) लगाना गलत है। इसके विपरीत, बीमा कंपनी के वकील श्री ललित चौहान ने हाईकोर्ट के आदेश का समर्थन किया। उनका कहना था कि हाईकोर्ट ने पहले ही उचित मुआवजा दिया है, और चूंकि दुर्घटना मोटरसाइकिल की लापरवाही से हुई थी जिस पर अपीलकर्ता सवार था, इसलिए ज़िम्मेदारी का विभाजन (देयता) सही था।
कोर्ट ने अंशदायी लापरवाही का आरोप खारिज किया
कोर्ट ने साफ़ किया कि मोटर वाहन दुर्घटनाओं में अगर किसी पिलियन राइडर (पीछे बैठे व्यक्ति) पर लापरवाही का आरोप लगता है, तो आरोप लगाने वाले पक्ष (जैसे बीमा कंपनी) को ही यह साबित करना होगा कि पीछे बैठे व्यक्ति की गलती से दुर्घटना हुई। कोर्ट ने पाया कि बीमा कंपनी वादी (पिलियन राइडर) की ओर से कोई भी लापरवाही साबित नहीं कर पाई, इसलिए मुआवजे से की गई 50% कटौती को रद्द कर दिया गया।
मुआवजे की राशि पर, कोर्ट ने किसान वादी की मासिक आय को हाईकोर्ट द्वारा आँकी गई ₹7,500 की राशि को अवास्तविक मानते हुए, उनकी आर्थिक स्थिति और 36 वर्ष की उम्र को ध्यान में रखकर, ₹10,000 प्रति माह निर्धारित किया, भले ही आय का कोई ठोस प्रमाण न हो।








