नई दिल्ली: हाल के दिनों में सोशल मीडिया और कुछ डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर एक सनसनीखेज दावे ने भू-राजनीतिक गलियारों (geopolitical corridors) में हलचल मचा दी है। दावा यह है कि म्यांमार का एक हिस्सा, जिसे ‘जोलैंड’ (Zoland) कहा जा रहा है, जल्द ही भारत का 29वां राज्य बन सकता है। आइए, इस दावे के तर्कों और उसकी असली हकीकत की पड़ताल करते हैं।

विलय का वह दावा जिसने दुनिया का ध्यान खींचा
यह चर्चा तब शुरू हुई जब यह कहा जाने लगा कि भारत सरकार ने म्यांमार के एक हिस्से को भारतीय संघ में मिलाने के लिए एक प्रस्ताव भेजा है। इस दावे को बल देने के लिए कई ऐतिहासिक, रणनीतिक और आर्थिक तर्क दिए जा रहे हैं। एक प्रमुख तर्क 1937 से पहले का ऐतिहासिक जुड़ाव है, जब बर्मा ब्रिटिश भारत का ही हिस्सा हुआ करता था। इसके अलावा, म्यांमार में फरवरी 2021 में हुए सैन्य तख्तापलट (coup d’état) के बाद से जारी राजनीतिक अस्थिरता, गृह युद्ध और आर्थिक पतन को भी एक बड़ा कारण बताया जा रहा है, जिसके चलते वहाँ की जनता एक स्थिर भविष्य के लिए भारत की ओर देख रही है।
भारत के लिए एक रणनीतिक महा-लाभ?
इस विलय के समर्थकों का तर्क है कि यह भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी‘ (Act East Policy) के लिए एक बड़ी कामयाबी होगी। इससे न केवल चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स‘ (String of Pearls) रणनीति को सीधा झटका लगेगा, बल्कि भारत को बंगाल की खाड़ी से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया तक निर्बाध ज़मीनी पहुँच मिल जाएगी। साथ ही, म्यांमार के तेल, गैस, कीमती पत्थर और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (rare earth elements) जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर भारत की सीधी पहुँच हो जाएगी, जिससे देश की ऊर्जा सुरक्षा को अभूतपूर्व मजबूती मिलेगी।
अफवाहों की उत्पत्ति और उसका सच
इस दावे की जड़ें मिजोरम के एक राज्यसभा सांसद (के. वनलालवेना) और म्यांमार के विद्रोही समूह ‘चिनलैंड काउंसिल’ के प्रतिनिधियों के बीच हुई एक मुलाकात में हैं। इसी मुलाकात के दौरान सांसद ने चिन समुदाय को भारतीय संघ में शामिल होने का एक अनौपचारिक न्योता दिया था। हालाँकि, यह समझना महत्वपूर्ण है कि किसी सांसद का व्यक्तिगत बयान भारत सरकार की आधिकारिक विदेश नीति नहीं होती है। भारत के विदेश या गृह मंत्रालय ने ऐसा कोई भी औपचारिक प्रस्ताव नहीं भेजा है।
जमीनी हकीकत दावों के ठीक विपरीत
एक तरफ विलय की अफवाहें हैं, तो दूसरी तरफ भारत सरकार म्यांमार सीमा पर सुरक्षा को और कड़ा कर रही है। भारत ने दशकों पुरानी मुक्त आवागमन व्यवस्था (Free Movement Regime – FMR) को खत्म करने का फैसला किया है और पूरी 398 किलोमीटर लंबी मणिपुर-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने का काम कर रही है। सरकार के ये कदम विलय की अटकलों से ठीक उल्टी दिशा में जाते हैं और सीमा सुरक्षा को प्राथमिकता देने का संकेत देते हैं।
असंभव क्यों है यह विलय?
वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में यह विलय लगभग असंभव है। इसका सबसे बड़ा कारण अंतरराष्ट्रीय कानून है, जिसके तहत भारत किसी अन्य संप्रभु राष्ट्र (sovereign nation) के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। दूसरी बड़ी बाधा चीन है, जिसने म्यांमार में भारी निवेश किया है। भारत का कोई भी ऐसा कदम चीन के साथ सीधे टकराव को जन्म दे सकता है। इसके अलावा, म्यांमार के गृह युद्ध को भारत की सीमा के भीतर लाना पूर्वोत्तर की दशकों की शांति को भंग कर सकता है।
निष्कर्ष. कल्पना या भविष्य की हकीकत?
म्यांमार के चिन समुदाय और भारत के मिज़ो लोगों के बीच गहरे जातीय और सांस्कृतिक संबंध हैं, जिसे ‘क्रॉस-बॉर्डर एथनिक किनशिप‘ (cross-border ethnic kinship) कहते हैं। लेकिन, म्यांमार के एक हिस्से को भारत में मिलाकर एक नया राज्य बनाने का दावा फिलहाल एक भू-राजनीतिक कल्पना (geopolitical fantasy) से अधिक कुछ नहीं है। भारत सरकार का वर्तमान ध्यान विलय पर नहीं, बल्कि अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने पर केंद्रित है।








