
पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने 62 साल (1962 में शुरू) पुरानी एक कानूनी लड़ाई को खत्म करते हुए मूल खरीददार के अधिकार को बरकरार रखा है। इस फ़ैसले के बाद, खरीददार के उत्तराधिकारी (सीके आनंद, जिनकी उम्र 80 वर्ष से ज़्यादा है) को फरीदाबाद की 5103 वर्ग फुट ज़मीन केवल कुछ हज़ार रुपये (25% अतिरिक्त लागत पर) में मिलेगी, जबकि इसकी मौजूदा कीमत 7 करोड़ रुपये है। कोर्ट ने कहा कि बिल्डर ने जानबूझकर ज़मीन ट्रांसफर नहीं की थी, इसलिए अब यह तर्क स्वीकार नहीं किया जाएगा कि ज़मीन की कीमत बढ़ गई है।
इरोस गार्डन ज़मीन विवाद की शुरुआत
यह मामला 1963 में शुरू हुआ था, जब आरसी सूद एंड कंपनी लिमिटेड ने फरीदाबाद के सूरजकुंड के पास इरोस गार्डन रिहायशी कॉलोनी विकसित करना शुरू किया। कंपनी ने सीके आनंदर की माँ, नंका देवी को 350 वर्ग गज और 217 वर्ग गज के दो प्लॉट बेचने पर सहमति जताई। नंका देवी ने प्लॉट की बिक्री राशि का लगभग आधा भुगतान कंपनी को एडवांस में जमा भी करा दिया था, जिसके बाद यह विवाद खड़ा हुआ।
कानूनी दांव-पेच में फंसी पुरानी प्लॉट बुकिंग
बुकिंग के तुरंत बाद, यह मामला कानूनी अड़चनों और अदालती मुकदमों में फँस गया। डेवलपर ने पंजाब (1963) और हरियाणा (1975) के शहरी विकास कानूनों का बहाना बनाकर आवंटियों को प्लॉट का कब्जा नहीं दिया, और सिर्फ यही भरोसा दिलाता रहा कि मंज़ूरी मिलते ही प्लॉट दे दिए जाएँगे। 1980 के दशक के मध्य तक, आवंटियों को लगा कि उनके प्लॉट किसी और को बेचे जा सकते हैं, इसलिए वे कोर्ट चले गए। कोर्ट के आदेश के बावजूद भी ज़मीन ट्रांसफर नहीं हुई। अब इतने लंबे इंतज़ार के बाद पीड़ित को हाई कोर्ट से जाकर न्याय मिला है।









