
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में वीडियो रिकॉर्ड करने वाले आरोपी को राहत देते हुए यह स्पष्ट किया है कि यदि किसी महिला का फोटो या वीडियो ऐसे समय लिया गया है जब वह कोई निजी (प्राइवेट) गतिविधि नहीं कर रही थी, तो उसे IPC की धारा 354C (वॉयरिज्म या ताक-झाँक) के तहत दोषी नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस को चार्जशीट (आरोपपत्र) दाखिल करते समय और ट्रायल कोर्ट को आरोप तय करते समय अधिक सावधानी बरतनी चाहिए थी।
वॉयरिज्म (ताक-झाँक) से जुड़े मामले में फैसला
वॉयरिज्म का मतलब है किसी महिला को उसकी निजी गतिविधियों के दौरान चुपके से देखना या ताक-झाँक करना, और यह एक गंभीर अपराध है। हाल ही में, जस्टिस एनके सिंह और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने एक आरोपी के खिलाफ केस बंद कर दिया, जिस पर वॉयरिज्म का आरोप था। आरोपी पर आरोप था कि उसने एक महिला का वीडियो रिकॉर्ड किया था जब वह किसी विवादित संपत्ति में प्रवेश कर रही थी। कोर्ट ने इस मामले को समाप्त कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने ‘वॉयरिज्म’ के आरोप पर दिया स्पष्टीकरण
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की जाँच करते हुए स्पष्ट किया कि किसी पर ‘वॉयरिज्म’ (Voyeurism) का आरोप तब ही लगाया जा सकता है, जब किसी महिला को उसकी निजी गतिविधि (Private Act) करते हुए चुपके से देखा या रिकॉर्ड किया गया हो। कोर्ट ने पाया कि इस विशेष मामले की एफआईआर और चार्जशीट में ऐसी कोई निजी गतिविधि सामने नहीं आई है, इसलिए वॉयरिज्म का अपराध नहीं बनता। कोर्ट ने इस बात पर आपत्ति जताई कि हाईकोर्ट ने भी यह मानते हुए कि एफआईआर में वॉयरिज्म का पता नहीं चला है, फिर भी आरोपी को आरोप मुक्त (डिस्चार्ज) करने से मना कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रॉपर्टी विवाद में पुलिस की कार्रवाई पर जताई नाराज़गी
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि गलत तरीके से रोके जाने के आरोप वाली FIR, दरअसल परिवार के बीच संपत्ति के विवाद से जुड़ी थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शिकायतकर्ता किरायेदार नहीं थी, बल्कि वह प्रॉपर्टी देखने आई थी। अदालत ने पुलिस की इस कार्रवाई पर नाराज़गी व्यक्त की और कहा कि संपत्ति के विवादों को आपराधिक मुकदमों (क्रिमिनल केस) के बजाय सिविल क़ानून के ज़रिए सुलझाया जाना चाहिए। बेंच ने बिना मज़बूत सबूत के चार्जशीट दाखिल करने की आलोचना की और कहा कि ऐसे अनावश्यक मामलों से न्याय व्यवस्था पर बेकार का दबाव पड़ता है।
क्या था मामला ?
यह मामला कोलकाता के सॉल्ट लेक की एक रिहायशी संपत्ति से जुड़ा है, जिस पर दो चचेरे भाइयों तुहिन कुमार बिस्वास और सह-मालिक के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा था। संपत्ति विवाद के बीच, तुहिन पर ममता अग्रवाल ने जबरन रोकने, धमकाने और बिना अनुमति फोटो-वीडियो बनाने का आरोप लगाकर FIR दर्ज कराई थी (धारा 354C सहित)।
2018 में सिविल कोर्ट ने आदेश दिया था कि दोनों पक्षों का संपत्ति पर साझा अधिकार रहेगा। जब शिकायतकर्ता 2020 में संपत्ति पर आईं, तब भी यह आदेश लागू था। ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा राहत न मिलने पर, आरोपी तुहिन कुमार बिस्वास ने अंततः सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।









