Land Acquisition: हाल ही किसानों से जुड़े पुराने मामले पर इलाहबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। यह फैसला भूमि अधिग्रहण के मामले में किसानों के हित के लिए लिया गया है। कोर्ट ने सरकार पर टिपण्णी करते हुए कहा कि किसानों को उनकी अपनी जमीन का मुआवजा दिया जाएगा और यह उनका मौलिक अधिकार है। सरकार मुआवजा देकर उनके ऊपर किसी भी तरह का एहसान नहीं कर रही है।
जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस अमिताभ कुमार राय की खंडपीठ, सरकार की इस देरी की निंदा करते हैं। बहुत दुःख की बात है कि सरकार ने किसानों का मुआवजा लौटाने में 40 साल से भी अधिक की देरी की है।

मुरादाबाद के किसानों को मिला उनका हक
सुपिरम कोर्ट के इस फैसले से मुरादाबाद के किसानों को बड़ी राहत मिलती है। ये सभी किसान 1977 में जमीन अधिग्रहण के बाद का उचित मुआवजा प्राप्त नहीं कर पाए थे इसलिए इन्होने कानून का रास्ता चुना। कोर्ट ने किर्षि उत्पादन मंडी समिति को छह हफ्ते के अंदर किसानों को मुआवजा देने का आदेश दिया है। नई दर पर मुआवजा दिया जाएगा।
कोर्ट ने इन्हे सख्त चेतावनी दी है कि अगर इस टाइम तक किसानों को उनका पूरा मुआवजा नहीं मिलता है तो जिस तारीख तक भुगतान होता है उसमें 12 प्रतिशत ब्याज और देना पड़ेगा।
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पुराना विवाद क्या था?
सरकार ने 1977 में बाजार निर्माण के लिए किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया था। लेकिन किसानों को उनकी जमीन का कम मुआवजा दिया। 1982 में सिर्फ 15.75 रूपए प्रति वर्ग गज ही तय हुआ था। लेकिन किसानों ने हार नहीं मानी और भूमि अधिग्रहण की धारा 28-ए का सहारा लिया जो उन्हें मुआवजा दिलाने के हक के लिए और मुआवजा राशि को भी बढ़ाने का काम करेगा।
सरकार की देरी की दलील को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है और कहा है कि न्याय सबको मिलना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि उसे उम्मीद है कि प्रशासन उसका आदेश ईमानदारी से मानेगी और इसका पालन करेगी।