हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट में एक मामला सामने आया, जिसमे एक महिला की अपील को खारिज कर दिया, क्योंकि उसने अपने पति की संपति में अपने आधिकारिक की मांग की थी. न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने कहा कि पत्नियों घर के सभी कामों में अपना योगदान देती है, लेकिन इस योगदान को मान्यता देने के लिए कोई कानून नहीं है. इसलिए इस योगदान के आधार पर पत्नी को पति की संपत्ति में मालिकाना हक नहीं दिया जा सकता और न ही इस योगदान का कोई आर्थिक मूल्य तय किया जा सकता है.

Delhi High Court का अहम फैसला
कोर्ट का कहना है कि एक ऐसा कानून बनाना चाहिए जो घर पर काम करने वाली महिलाओ के योगदान को पहचान दे और इसके आधार पर संपत्ति के मालिकाना हक का फैसला हो सकें. लेकिन अभी तक ऐसा कोई कानून नहीं है, इसलिए कोर्ट इस मामले में महिला को पति की संपत्ति में मालिकाना हक नहीं दे सकती हैं. इस मामले में कोर्ट ने महिला की अपील को खारिज कर दिया.
पत्नी को नही मिलेगा मालिकाना हक
इस मामले की सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि जिन घरों में काम करने वाला कोई नही होता है, वहां गृहिणी ही सभी काम करके पैसों की बचत करती है, जिस वजह से घर वाले कोई संपति खरीद पाते है. जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की बेंच ने कहा कि सिर्फ शादीशुदा होने से किसी महिला को पति की संपत्ति पर मालिकाना हक नहीं मिल सकता हैं,
पति की संपत्ति पर पत्नी का हक तभी होगा, जब वह उसमे कोई खास योगदान दें. यदि पत्नी के पास इसका कोई सबूत नहीं है, तो संपत्ति पर उसका हक नही होगा.
महिला ने कहा
महिला का कहना है कि एक महिला घर के सभी और जिम्मेदारियों को निभाकर कोई संपति बनाने में अपना पूरा योगदान देती है. महिला साड़ी के समय पति या पत्नी में से किसी के नाम पर खरीदी गई कोई भी संपत्ति उनके संयुक्त प्रयासों का नतीजा मानी जानी चाहिए. इसलिए पत्नी को संपत्ति में उसका हिस्सा न देना गलत है, खासकर तब जब वह परिवार की देखभाल के लिए अपनी नौकरी भी छोड़ देती है.