भारत में यह नज़ारा आम है एक धागे में बंधा हुआ नींबू और 7 मिर्च, जो कहीं दरवाज़े पर झूल रहा होता है, तो कहीं ट्रक के बंपर पर. ज़्यादातर लोग इसे “बुरी नज़र से बचाने वाला टोटका” मानते हैं. लेकिन क्या यह सिर्फ अंधविश्वास है? या इसके पीछे कोई समझदारी भी छुपी है? चलिए, इस परंपरा को ज़रा गहराई से समझते हैं सरल भाषा में।

पुरानी परंपरा, लेकिन बेवजह नहीं
यह प्रथा सदियों पुरानी है मान्यता है कि नींबू और मिर्च से नकारात्मक ऊर्जा या ‘नज़र’ नहीं लगती. खासतौर पर व्यापारियों और ड्राइवरों में ये परंपरा ज़्यादा दिखती है. लेकिन असल में इसके पीछे कुछ बेहद व्यावहारिक और वैज्ञानिक कारण भी हैं.
1. मच्छर-कीड़े भगाने का देसी तरीका
नींबू में होती है तेज़ खट्टी गंध, और मिर्च में होता है तीखा ‘कैप्साइसिन’. जब इन्हें एक साथ लटकाया जाता है, तो उनका रस धीरे-धीरे टपकता है और उसकी महक से कई कीड़े-मकोड़े और मच्छर दूर रहते हैं.
पुराने ज़माने में जब न कोई स्प्रे था, न मच्छर मारने की दवा, तब यह तरीका नेचुरल कीटनाशक (natural repellent) की तरह काम करता था.
2. हवा को साफ रखने का असरदार जुगाड़
नींबू और मिर्च दोनों की गंध तेज़ होती है. जब ये हवा में घुलती है, तो वह आसपास की बदबू या बैक्टीरिया को कम करने में मदद करती है. यानी यह एक तरह का देसी एयर फ्रेशनर भी था.
3. मानसिक भरोसा जो दिल को सुकून दे
हमारे दिमाग में कुछ चीज़ें विश्वास बनकर बैठ जाती हैं। जैसे डॉक्टर की सफेद कोट देख भरोसा होता है, वैसे ही नींबू-मिर्च देखकर कुछ लोगों को लगता है कि वे अब “बुरी नज़र” से सुरक्षित हैं.
यह एक तरह की मनोवैज्ञानिक ढाल होती है, जो इंसान को आत्मविश्वास देती है और यह भी ज़रूरी होता है.
4. नमी और फफूंद पर भी असर
नींबू और मिर्च की बनावट ऐसी होती है कि ये कुछ हद तक हवा से नमी सोख सकते हैं. गर्म और आर्द्र जगहों पर इससे फफूंद और बैक्टीरिया का असर थोड़ा कम हो सकता है.
5. सूखने पर बदलने की परंपरा एक साइंटिफिक रीजन भी!
लोग मानते हैं कि जब नींबू सूख जाता है या मिर्च मुरझा जाती है, तो वह सारी बुरी नज़र सोख लेता है इसलिए उसे बदल देना चाहिए.
असल में यह इस बात का संकेत भी हो सकता है कि अब उनका असर कम हो गया है तो उन्हें बदलना बेहतर है. यानी यह एक तरह से प्राकृतिक “टाइमर” भी है.
तो क्या हमें इस परंपरा को मानना चाहिए?
देखिए, मानना या न मानना आपकी सोच पर निर्भर करता है. लेकिन यह जानना ज़रूरी है कि हर परंपरा बेवजह नहीं होती. कई बार हमारे बुज़ुर्गों ने अपने अनुभवों से ऐसे उपाय अपनाए जो समय के साथ “आस्था” बन गए.
आज भले ही हमारे पास मच्छर मारने की दवाएं, एयर फ्रेशनर और सैनिटाइज़र हैं, लेकिन कभी ये नींबू-मिर्च ही हमारे देसी साइंटिस्ट्स की खोज थे.
परंपरा को समझें, सिर्फ मानें नहीं
नींबू-मिर्च लटकाना सिर्फ “नज़र का टोटका” नहीं, बल्कि एक ऐसा उपाय है जिसमें ज्ञान, अनुभव और आस्था का मेल है. अगर आप इसे सिर्फ अंधविश्वास कहकर नज़रअंदाज़ करेंगे, तो शायद उस देसी समझदारी को भी खो देंगे जो कभी हमारे समाज की ताकत थी.