
रूस का एक जैविक रिसर्च सैटेलाइट जिसका नाम बायोन-एम नं. 2 था, वह 30 दिन अंतरिक्ष में रहने के बाद 19 सितंबर को धरती पर सुरक्षित वापस आ गया। इस खास मिशन को ‘नोआस आर्क’ (Noah’s Ark) नाम दिया गया था, क्योंकि इसमें अंतरिक्ष में प्रयोग के लिए 75 चूहे, 1,500 से ज़्यादा मक्खियाँ, कई पौधों के बीज और सूक्ष्मजीव भेजे गए थे। 20 अगस्त को इस सैटेलाइट को कजाकिस्तान से लॉन्च किया गया था। अंतरिक्ष में लगभग 370 से 380 किलोमीटर की ऊँचाई पर इसने इन जीवों और पौधों पर बिना गुरुत्वाकर्षण और कॉस्मिक रेडिएशन का असर देखा।
उपग्रह ओरेनबर्ग क्षेत्र
रूस का ये उपग्रह ओरेनबर्ग क्षेत्र के घास के मैदानों में उतरा। उतरते समय इसमें हल्की आग लग गई थी, जिसे तुरंत बुझा दिया गया। इसके तुरंत बाद विशेषज्ञ टीमें हेलीकॉप्टर से वहां पहुंची और उन्होंने जीवित नमूनों जैसे – मक्खियाँ को बाहर निकाला। इन नमूनों की प्राथमिक जाँच एक मेडिकल टेंट में की गई। इस जाँच का मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना था कि अंतरिक्ष यात्रा का इन जीवों, खासकर मक्खियों के तंत्रिका तंत्र पर क्या असर पड़ा है।
मिशन को 10 हिस्सों में बांटा
यह अंतरिक्ष मिशन रूस की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसी रोसकोस्मोस, रशियन एकेडमी ऑफ साइंसेज, और इंस्टिट्यूट ऑफ बायोमेडिकल प्रॉब्लम्स (IBMP) ने मिलकर चलाया था। इस वैज्ञानिक मिशन को दस मुख्य हिस्सों में बाँटा गया था। पहले दो हिस्सों में जानवरों पर गुरुत्वाकर्षण और रेडिएशन के असर की जाँच की गई। फिर, तीन से पाँचवें हिस्सों में अंतरिक्ष का पौधों और छोटे जीवों पर असर देखा। इसके बाद छठे से नौवें में बायोटेक्नोलॉजी, विकिरण से बचाव, और नई तकनीकों का परीक्षण शामिल था। दसवाँ और आखिरी हिस्सा छात्रों के प्रयोगों के लिए समर्पित था, जिसमें रूस और बेलारूस के छात्रों ने भाग लिया था।
वैज्ञानिकों ने किया बहुत ही रोचक प्रयोग
रूस के वैज्ञानिकों ने बहुत से रोचक प्रयोग किया, जिसे ‘मीटियोराइट’ कहा गया। इसमें उन्होंने बेसाल्ट में छोटे-छोटे जीव रखकर यह जानने की कोशिश की कि क्या वे धरती के वायुमंडल में आते समय होने वाली भयंकर गर्मी को सहकर भी ज़िंदा रह सकते हैं। यह प्रयोग उस सिद्धांत की जाँच करने के लिए था, जिसके अनुसार जीवन अंतरिक्ष से धरती पर आया हो सकता है।