
मेरठ की रिंग रोड निर्माण और बिजली बंबा बाईपास चौड़ीकरण की परियोजना हमेशा की तरह एक बार फिर उलझती दिख रही है। पहले प्रस्ताव और सर्वे के नाम पर देरी हुई और अब शासन स्तर पर बात होने और एलाइनमेंट सर्वे होने के बावजूद, मेरठ विकास प्राधिकरण (मेडा) ने फिर से एक नया सर्वे शुरू कर दिया है। इस नए सर्वे में दोनों सड़कों को एक नए डिज़ाइन में बनाने और इन्हें पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल पर बनाने की संभावना तलाशी जाएगी। इसका मतलब है कि इन परियोजनाओं के शुरू होने से पहले अभी कुछ और महीने प्रस्तावों की प्रक्रिया में लगेंगे।
रिंग रोड निर्माण में पैसों की कमी बनी बाधा
बुलंदशहर-हापुड़ हाईवे से जुर्रानपुर रेलवे लाइन, दिल्ली रोड होते हुए दून बाईपास तक रिंग रोड बनाने का मुख्य कारण पैसे की कमी के चलते अटक गया है। इस परियोजना के लिए लगभग 15 हेक्टेयर ज़मीन खरीदी जानी है, जिस पर 162 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसके अलावा, रिंग रोड के निर्माण कार्य पर अलग से 300 करोड़ रुपये खर्च होंगे, जिसमें अंडरपास, फ्लाईओवर, नाले का निर्माण और बिजली का काम शामिल है।
परियोजनाओं के लिए धन की कमी
जमीन खरीदने के लिए मेडा (MeDA) ने तो अपने कोष से ₹100 करोड़ की व्यवस्था कर ली है, लेकिन उसे राज्य सरकार से अभी ₹362 करोड़ (₹62 करोड़ जमीन के लिए और ₹300 करोड़ निर्माण कार्य के लिए) मिलने हैं। हालाँकि, इन पैसों को लेकर चर्चाएँ हैं पर सरकार से अभी कोई आधिकारिक पत्र नहीं मिला है।
दूसरी तरफ बिजली बंबा बाईपास के चौड़ीकरण पर भी लगभग ₹200 करोड़ खर्च होने का अनुमान है। चूँकि सरकार से इतनी बड़ी धनराशि मिलना मुश्किल है, इसलिए इन दोनों मार्गों को ‘पीपीपी मॉडल’ (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) पर बनाने की संभावना तलाशने का निर्देश दिया गया था। इसी निर्देश के बाद, कमिश्नर ने नए सिरे से सर्वे करने का आदेश दिया है।
अन्य तरीकों से राजस्व कमाने की अनुमति
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत, किसी भी परियोजना की पूरी लागत एक निवेशक वहन कर सकता है। इसके बदले में, निवेशक को उन मार्गों से टोल वसूलने या अन्य तरीकों से राजस्व कमाने की अनुमति दी जाएगी। इसके अतिरिक्त, निवेशक को उसके निवेश की भरपाई के लिए सरकार की ओर से एफएआर (FAR) में छूट (फ्लोर एरिया रेशियो) और भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क में छूट जैसी सुविधाएँ भी दी जा सकती हैं।
12 साल से लटका ओवरब्रिज
एक ओवरब्रिज का निर्माण पिछले 12 सालों से रुका हुआ है, जबकि इसकी आधारशिला 2011 में रखी गई थी। समझौते के तहत, मेरठ विकास प्राधिकरण (MEERUT Development Authority – MEERUTDA) को सड़क बनाने के लिए ज़मीन खरीदनी थी, जिसका खर्च उन्हें उठाना था। रेलवे ने अपना हिस्सा यानी ओवरब्रिज तो बना दिया, लेकिन MEERUTDA ज़मीन नहीं खरीद पाया, जिसके कारण ओवरब्रिज तक पहुँचने वाली एप्रोच रोड (Approach Road) नहीं बन सकी। ज़मीन न मिलने के कारण पीडब्ल्यूडी (PWD) ने भी सड़क निर्माण का काम शुरू नहीं किया, और यह प्रोजेक्ट इतने सालों से हवा में ही लटका हुआ है।
‘बिजली बंबा बाईपास’ चौड़ीकरण पर बार-बार अटकी बात
‘बिजली बंबा बाईपास’ (Meerut Bijli Bamba Bypass) को बनाने के लिए अधिकारियों ने NHAI (भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण) से बात की, लेकिन NHAI ने पहले तो ज़मीन खरीदकर देने की शर्त रखी, और बाद में इस शर्त के बावजूद इसे बनाने से मना कर दिया। इसके बाद, PWD (लोक निर्माण विभाग) ने पहले ₹300 करोड़ और फिर बाईपास के चौड़ीकरण के लिए एक अन्य प्रस्ताव शासन को भेजा, पर दोनों बार शासन ने पैसे देने से इनकार कर दिया। हालाँकि, बाद में PWD द्वारा ₹291 करोड़ का एक और प्रस्ताव भेजा गया, जिसमें यह योजना थी कि PWD ज़मीन खरीदेगा और फिर मेडा (मेरठ विकास प्राधिकरण) अपने फंड से सड़क का निर्माण करेगा।
सड़क निर्माण की अटकी योजना और नया सर्वे
जनप्रतिनिधियों द्वारा सड़क बनाने का प्रस्ताव पास होने की खबर मिलते ही, शासन ने उसे रद्द कर दिया। इसके बाद, एक नया रास्ता निकाला गया कि 24 मीटर चौड़ी सड़क को दो हिस्सों में बनाया जाए, जिससे ज़मीन खरीदने का खर्च ₹162 करोड़ आएगा।
इस पर शासन स्तर की बैठक में तय हुआ कि मेडा (MEDA) ₹100 करोड़ देगा और ₹62 करोड़ शासन पीडब्ल्यूडी को देगा, साथ ही सड़क बनाने का खर्च भी शासन देगा। हालाँकि, न तो शासन से ₹62 करोड़ आए और न ही कोई आधिकारिक पत्र मिला। इसके बाद पीडब्ल्यूडी और मेडा दोनों ने एक-दूसरे पर ज़िम्मेदारी डाल दी। अब, इस अटके हुए काम के लिए फिर से नए सिरे से सर्वे किया जा रहा है।









