निजी स्कूलों के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इन स्कूलों द्वारा की जानी वाली फीस मनमानी वृद्धि मामले के लिए जरुरी क़ानूनी सीमा को निर्धारित किया है। कोर्ट का कहना है कि दिल्ली सरकार का शिक्षा निदेशालय (DOE) निजी स्कूलों के शुल्क, यानी फीस में परिवर्तन या जाँच तभी कर सकता है जब कोई ख़ास कारण हो। यानी कि ये स्कूल फीस में बिना बात के बढ़ोतरी करते हैं और इन्होने शिक्षा को पैसा कमाने का धंदा समझा हुआ है। इस मामले पर मुख्य न्यायधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की बेंच ने पहले दिए गए एकल पीठ के निर्णय को सही बताया है।

शिक्षा निदेशालय के अधिकार की सीमा!
कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा है, कि सरकार, स्कूलों की फीस में वृद्धि करने पर कोई भी रोक यह अपना मनमाने तरीक से आदेश नहीं दे सकती हैं। सरकार कुछ खास वजह पर ही इन नियमों में दखल दे सकती है।
सरकार शुल्क की जाँच कर सकती है, स्कूल जब अपनी फीस निर्धारित करते हैं तो उन्हें ध्यान देना है कि इसमें सभी उपलबध सुविधांए हैं, शिक्षकों की सैलरी और स्कूल के विकास के लिए योजनाएं शामिल होती हैं। अगर कोई स्कूल मनमाने तरीके से मुनाफे के लिए फीस ले रहा है तो सरकार फीस नियंत्रित कर सकती है।
शिक्षा निदेशालय स्कूल पर कार्यवाई तब का सकता है, जब उसे जाँच-पड़ताल में पता चलता है कि स्कूल का हिसाब-किताब गड़बड़ है और यह क़ानून के हिसाब से खर्च नहीं किया जा रहा है।
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पूरा मामला क्या था?
दिल्ली सरकार और छात्रों की जो याचिका दायर थी उसे कोर्ट ने रद्द कर दिया है। दिल्ली के दो स्कूल, ब्लूबेल्स इंटरनेशनल स्कूल और लीलावती विद्या मंदिर की फ़ीस बढ़ाने को लेकर 2017-18 याचिका दायर की गई थी। इसमें फीस बढ़ाने से रोकने वाले आदेश को रस करने के फैसले को लेकर चुनौती दी गई। लेकिन कोर्ट ने अपने फैसले में साफ साफ कहा है कि स्कूल द्वारा लिया गया पैसा स्कूल के काम पर लगने वाला है, और यह शिक्षा से जुड़े कामों पर ही लगना चाहिए।