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2.76 करोड़ नौकरी का वादा, लेकिन खाली पद सिर्फ 4.73 लाख! या सिर्फ तेजस्वी का चुनावी स्टंट, जानें

क्या 'हर घर सरकारी नौकरी' का सपना पूरा हो सकता है? एक तरफ तेजस्वी यादव का 2.76 करोड़ परिवारों नौकरियों का वादा है, तो दूसरी तरफ बिहार सरकार के पास खाली पद सिर्फ 4.73 लाख हैं। इस चुनावी वादे की हकीकत क्या है, जानें

By GyanOK

तेजस्वी यादव का यह वादा कि उनकी सरकार बनने पर हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी, चुनावी राजनीति में एक बहुत बड़ा और आकर्षक नारा है, लेकिन इसे हकीकत में बदलना बेहद चुनौतीपूर्ण और लगभग असंभव लगता है। आइए इसके व्यावहारिक पहलुओं और आंकड़ों को समझते हैं।

2.76 करोड़ नौकरी का वादा, लेकिन खाली पद सिर्फ 4.73 लाख! या सिर्फ तेजस्वी का चुनावी स्टंट, जानें

वादे की व्यावहारिकता पर बड़े सवाल

यह वादा सुनने में जितना अच्छा लगता है, इसे लागू करने में उतनी ही बड़ी आर्थिक और प्रशासनिक बाधाएं हैं। बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण 2023 के अनुसार, राज्य में लगभग 2.76 करोड़ परिवार हैं । अगर हर परिवार से एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दी जाती है, तो इसका मतलब होगा कि राज्य सरकार को लगभग 2.76 करोड़ नई सरकारी नौकरियां पैदा करनी होंगी।

अगर हर कर्मचारी को न्यूनतम वेतन भी दिया जाए, तो इसका कुल वार्षिक खर्च राज्य के कुल बजट से भी कई गुना ज्यादा हो सकता है। इतने बड़े पैमाने पर वेतन, पेंशन और अन्य भत्तों का बोझ उठाना किसी भी राज्य सरकार के लिए संभव नहीं है।

किसी भी राज्य में सरकारी नौकरियों की संख्या सीमित होती है। ये नौकरियां शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस, प्रशासन जैसे विभागों में जरूरत के आधार पर बनाई जाती हैं।

  • बिहार में कुल सरकारी पद: आंकड़ों के अनुसार, बिहार में कुल स्वीकृत सरकारी पद लगभग 16.27 लाख हैं।
  • खाली पद: इनमें से भी लगभग 4.73 लाख पद ही खाली हैं। सबसे ज्यादा 2.17 लाख पद शिक्षा विभाग में, 65,000 स्वास्थ्य विभाग में और 42,414 पद गृह विभाग में खाली हैं।
  • इस हिसाब से देखें तो 2.76 करोड़ नौकरियों का वादा, उपलब्ध खाली पदों से सैकड़ों गुना ज्यादा है।

सरकारी नौकरी के लिए एक न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता और एक तय भर्ती प्रक्रिया (जैसे परीक्षा और इंटरव्यू) होती है। यह कैसे सुनिश्चित किया जाएगा कि हर परिवार में कम से कम एक सदस्य उस नौकरी के लिए योग्य हो? क्या योग्यता के मानकों को नजरअंदाज किया जाएगा? अगर ऐसा होता है, तो यह संविधान के समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा।

राजनीतिक विशेषज्ञ डी.एम. दिवाकर का कहना है कि इस वादे को पूरा करने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के विकास की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिए, हर परिवार से एक नौकरी देने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि उस परिवार में कम से ‘मैट्रिक पास’ सदस्य हो, जिसके लिए बड़ी संख्या में स्कूल खोलने होंगे।

    तेजस्वी यादव का क्या है तर्क?

    तेजस्वी यादव का कहना है कि यह वादा सिर्फ “जुमलेबाजी” नहीं है, बल्कि उनकी पार्टी ने इस पर वैज्ञानिक अध्ययन किया है। उनका दावा है कि सत्ता में आने के 20 दिनों के भीतर वे इसके लिए एक नया कानून बनाएंगे और 20 महीने में इसे लागू कर देंगे। वह अपने 17 महीने के छोटे कार्यकाल में 5 लाख नौकरियां देने का उदाहरण भी देते हैं।

    तो क्या है इस वादे की हकीकत

    चुनावी माहौल में ऐसे वादे मतदाताओं को लुभाने में तो कारगर हो सकते हैं, क्योंकि बिहार जैसे राज्य में बेरोजगारी एक बहुत बड़ा मुद्दा है। हालांकि, आर्थिक और प्रशासनिक हकीकतों को देखते हुए, “हर घर सरकारी नौकरी” का वादा जमीन पर उतारना लगभग नामुमकिन लगता है।

    बिहार में कुल सरकारी नौकरियां ही 16 लाख के करीब हैं, ऐसे में 2.76 करोड़ नौकरियां पैदा करने के लिए राज्य को अपने संसाधनों से कहीं ज्यादा धन और एक पूरी तरह से नए प्रशासनिक ढांचे की जरूरत होगी, जो फिलहाल संभव नहीं दिखता, हो सकता है बाद में इसके लिए कई तरह की शर्ते लगाई जाएं जिससे पात्र परिवारों की संख्या में भारी भरकम कमी आ जाएगी, और लोग हाथ मलते ही रह जाएंगें

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    GyanOK
    GyanOK एडिटोरियल टीम में काफी अनुभवी पत्रकार एवं कॉपी राइटर हैं जो विभिन्न राज्यों, शिक्षा, रोजगार, देश-विदेश से संबंधित खबरों को कवर करते हैं, GyanOk एक Versatile न्यूज वेबसाइट हैं, इसमें आप समाचारों के अलावा, शिक्षा, मनोरंजन से संबंधित क्विज़ भी खेल सकते हैं।

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