
भारत में विवाहित जोड़ों के बीच आर्थिक जिम्मेदारी से जुड़े विवाद नए नहीं हैं, खासकर जब बात गुजारा भत्ते यानी maintenance allowance की आती है। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐसा फैसला दिया है जिसने इस विषय पर नई बहस को जन्म दे दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि अगर पत्नी self-dependent है और अपनी आय से आराम से रह सकती है, तो वह पति से गुजारा भत्ता मांगने की हकदार नहीं है।
पूरा मामला क्या था?
यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकल पीठ ने सुनाया। मामला उस याचिका से जुड़ा था जो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत दायर की गई थी। इस धारा के अनुसार, अगर किसी पति या पत्नी के पास अपनी जीविका चलाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं, तो वह जीवनसाथी गुजारा भत्ता की मांग कर सकता है।
इस विशेष मामले में, पत्नी एक शिक्षिका के पद पर कार्यरत थी और उसकी तय आय स्रोत के साथ आर्थिक स्थिति मजबूत थी। निचली अदालत ने पहले पति को आदेश दिया था कि वह पत्नी को ₹20,000 मासिक गुजारा भत्ता दे। लेकिन हाईकोर्ट ने उस आदेश को कानूनी और व्यावहारिक दृष्टि से गलत मानते हुए रद्द कर दिया।
कोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता का उद्देश्य केवल उस व्यक्ति की सहायता करना है जो self-support नहीं कर सकता। यदि पत्नी पहले से ही कमाने वाली है और उसकी आर्थिक स्थिति स्थिर है, तो पति पर अतिरिक्त वित्तीय भार डालना उचित नहीं होगा। जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा कि “Maintenance का अधिकार किसी पुनर्वितरण का माध्यम नहीं है, बल्कि एक सहायता (support) है जो तभी दी जानी चाहिए जब वाकई जरूरत हो।”
कानून का सार: कब मिलता है Maintenance?
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 और 25 दोनों में Maintenance की व्यवस्था की गई है।
- धारा 24: मुकदमे के दौरान अंतरिम गुजारा भत्ता के लिए।
- धारा 25: मुकदमे के बाद स्थायी गुजारा भत्ता के लिए।
दोनों ही स्थितियों में कोर्ट यह देखता है कि आवेदन करने वाला जीवनसाथी वास्तव में निर्भर है या नहीं। अगर वह व्यक्ति सक्षम, शिक्षित और आय प्राप्त करने में सक्षम है, तो Maintenance की मांग को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
आत्मनिर्भरता बनाम आर्थिक जिम्मेदारी
समाज में यह धारणा लंबे समय से रही है कि तलाक या विवाह संबंधों में विवाद होने पर पत्नी को हमेशा गुजारा भत्ता मिलेगा। लेकिन आधुनिक समय में जब महिलाएं शिक्षा और रोजगार दोनों में आत्मनिर्भर हो रही हैं, तो कोर्ट भी समानता और न्याय के दृष्टिकोण से यह देखता है कि पति-पत्नी दोनों की आय और खर्च का संतुलन कैसा है।
यह फैसला इसी सोच को दर्शाता है कि न्याय केवल भावनाओं पर नहीं बल्कि व्यावहारिक वास्तविकताओं पर आधारित होना चाहिए। अगर पत्नी स्वतंत्र आय का स्रोत रखती है, तो उसे पति पर आर्थिक रूप से निर्भर घोषित नहीं किया जा सकता।
समाज में संदेश
इस मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि Maintenance का कानूनी अधिकार किसी एक लिंग के पक्ष में बनाया गया विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि यह वित्तीय निर्भरता की स्थिति पर आधारित है। अगर कोई भी पक्ष चाहे वह महिला हो या पुरुष आर्थिक रूप से स्थिर है, तो दूसरे जीवनसाथी से गुजारा भत्ता मांगना न्यायसंगत नहीं होगा
यह फैसला ऐसे सभी मामलों के लिए मिसाल सेट करता है जहां पति या पत्नी दोनों ही आत्मनिर्भर हैं। कोर्ट ने एक तरह से यह संदेश दिया है कि विवाहिक विवादों में आर्थिक सहारे का दावा तभी जायज़ है जब वास्तविक जरूरत मौजूद हो।









