उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ी हलचल देखने को मिल रही है, जिसके केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के दिवंगत नेता और पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह हैं। सूत्रों के हवाले से खबर है कि योगी आदित्यनाथ सरकार 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में एक नए जिले का गठन कर सकती है, जिसका नाम ‘कल्याण सिंह नगर’ रखा जाएगा। यह कदम बीजेपी के लिए एक बड़ा सियासी और भावनात्मक दांव माना जा रहा है, जिसका असर न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश की राजनीति पर पड़ सकता है।

कल्याण सिंह: हिंदुत्व और सामाजिक न्याय का संगम
कल्याण सिंह भारतीय राजनीति में एक ऐसे कद्दावर नेता के रूप में स्थापित हैं, जिन्होंने हिंदुत्व और सामाजिक न्याय की दो विपरीत मानी जाने वाली धाराओं को एक साथ साधकर एक नया राजनीतिक समीकरण गढ़ा था। वह बीजेपी के भीतर और बाहर, हिंदुत्व को मानने वाले वर्ग और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करने वाले पिछड़े वर्ग, दोनों में समान रूप से लोकप्रिय और स्वीकार्य थे। बीजेपी इस बात को भली-भांति जानती है कि कल्याण सिंह की यह विरासत आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। इसीलिए, उनके नाम पर एक जिला बनाकर पार्टी उनके सम्मान को एक नई ऊंचाई देना चाहती है, साथ ही एक बड़ा राजनीतिक संदेश भी।
‘कल्याण सिंह नगर’ का प्रस्तावित स्वरूप
प्रस्तावित ‘कल्याण सिंह नगर’ जिले को तीन मौजूदा जिलों के कुछ हिस्सों को मिलाकर बनाने की योजना है। इसमें अलीगढ़ जिले का अतरौली क्षेत्र, कासगंज का गंगीरी क्षेत्र और बुलंदशहर का डिबाई इलाका शामिल होगा। अतरौली का इसमें विशेष महत्व है, क्योंकि यह कल्याण सिंह का गृह क्षेत्र रहा है और यहीं से उन्होंने अपनी लंबी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की थी। यह वही अतरौली है जिसके लिए कल्याण सिंह के मन में हमेशा एक विशेष स्थान रहा, ठीक वैसे ही जैसे मुलायम सिंह यादव के लिए सैफई का था।
एक पुराना सपना जो अब साकार हो सकता है
यह दिलचस्प है कि कल्याण सिंह जब खुद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने भी अतरौली को एक अलग जिला बनाने की कोशिश की थी। उस समय वह अलीगढ़, डिबाई और कासगंज के कुछ हिस्सों को मिलाकर ‘अतरौली’ नाम से एक नया जिला बनाना चाहते थे। हालांकि, राजनीतिक विरोध और फिर राम जन्मभूमि आंदोलन के चलते उनकी सरकार गिरने के कारण उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। अब, योगी सरकार उनके इस अधूरे सपने को एक नए रूप में साकार करने की तैयारी में है, लेकिन इस बार जिले का नाम ‘अतरौली’ न होकर, खुद कल्याण सिंह के नाम पर ‘कल्याण सिंह नगर’ रखने का प्रस्ताव है।
प्रशासनिक प्रक्रिया और राजनीतिक मायने
किसी नए जिले का गठन एक लंबी और जटिल प्रशासनिक प्रक्रिया होती है। इसकी शुरुआत राजस्व परिषद (Board of Revenue) द्वारा की जाती है, जिसके बाद कई स्तरों पर लिखा-पढ़ी और कागजी कार्रवाई होती है। शासन के स्तर पर यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और संकेत मिल रहे हैं कि सरकार इसे 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले पूरा करने के लिए गंभीर है।
अगर यह जिला बन जाता है, तो यह हाल के दशकों में उत्तर प्रदेश में किसी बड़े राजनेता के नाम पर बनने वाला पहला जिला होगा। इससे पहले मायावती सरकार ने कांशीराम जी के नाम पर कुछ स्थानों का नामकरण किया था, जिसे बाद में अखिलेश यादव सरकार ने बदल दिया था। इस लिहाज से कल्याण सिंह के नाम पर एक जिले का बनना एक ऐतिहासिक घटना होगी।
बीजेपी का राष्ट्रव्यापी संदेश
बीजेपी इस कदम को सिर्फ एक जिले के गठन के तौर पर नहीं देख रही है। यह कल्याण सिंह के प्रति एक बड़ी श्रद्धांजलि के साथ-साथ पिछड़े वर्ग को एक बड़ा संदेश देने की कोशिश भी है। पार्टी इसे देशभर में प्रचारित करेगी और यह बताएगी कि वह पिछड़ों के नायकों का कितना सम्मान करती है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने कल्याण सिंह को भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से भी सम्मानित किया था। उनके नाम पर पहले से ही उत्तर प्रदेश में कई संस्थान और अस्पताल हैं, लेकिन एक पूरे जिले का नामकरण करना एक अभूतपूर्व कदम होगा।
यह कदम बीजेपी को 2027 के चुनाव में एक बड़ा चुनावी लाभ दिला सकता है, क्योंकि यह कल्याण सिंह की विरासत को पुनर्जीवित करेगा और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को भावनात्मक रूप से पार्टी से जोड़ेगा। अब देखना यह है कि यह प्रशासनिक कवायद कब तक जमीनी हकीकत में तब्दील होती है।








