
हम सभी ने कभी न कभी किसी को शराब पीने से पहले गिलास से उसकी कुछ बूंदें जमीन पर या हवा में छिड़कते हुए जरूर देखा होगा। यह दृश्य खासकर भारत में आम है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि ऐसा केवल भारत में नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में भी किया जाता है। इसे एक प्रकार का “लाइबेशन” कहा जाता है। लेकिन आखिर इस परंपरा की शुरुआत कैसे हुई, और क्यों आज भी लोग इसे निभाते हैं?
“लाइबेशन” क्या है?
अंग्रेज़ी शब्द Libation का अर्थ होता है किसी देवी-देवता या पूर्वज की आत्मा के सम्मान में शराब की कुछ बूंदों को अर्पित करना। यानी शराब पीने से पहले उसकी थोड़ी मात्रा देवताओं या आत्माओं के नाम की जाती है। यह एक तरह की आध्यात्मिक या धार्मिक श्रद्धांजलि मानी जाती है, जो मनुष्य और दैवीय शक्तियों के बीच एक प्रतीकात्मक संबंध को दर्शाती है।
भारत में इस परंपरा की जड़ें
भारत में शराब से जुड़ी यह परंपरा बहुत पुरानी है। प्राचीन काल में इसे देवता भैरवनाथ से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि भैरवनाथ तांत्रिक शक्तियों के स्वामी थे और उन्हें प्रसन्न रखने के लिए उनके सम्मान में शराब अर्पित की जाती थी। खासकर उत्तर भारत में भैरव मंदिरों में आज भी शराब चढ़ाने का प्रचलन देखा जा सकता है। आम लोगों ने धीरे-धीरे इस परंपरा को अपने जीवन में शामिल कर लिया। शराब की कुछ बूंदें जमीन पर छिड़कना इस विश्वास के साथ किया जाने लगा कि इससे व्यक्ति पर बुराई और नकारात्मकता का असर नहीं होगा।
श्रद्धा से शुरू हुई आदत
समय के साथ यह धार्मिक कर्मकांड एक सामाजिक रिवाज़ में बदल गया। बहुत से परिवारों में यह एक आदत बन गई—शराब पीने से पहले तीन बार हल्के हाथों से बूंदें छिड़कना। इसे शुभ मानते हुए पीने वाले व्यक्ति यह काम बिना सोचे समझे भी करते हैं। यह सिर्फ धार्मिक आस्था नहीं रही, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही पारिवारिक परंपरा बन गई।
दुनिया के अलग-अलग देशों में लाइबेशन की परंपरा
दिलचस्प बात यह है कि लाइबेशन की परंपरा केवल भारत तक सीमित नहीं है।
- मिस्र, ग्रीस और रोम में लोग शराब की कुछ मात्रा देवताओं और अपने मृत प्रियजनों की आत्मा को अर्पित करते थे।
- क्यूबा और ब्राजील में भी यह रस्म आज भी निभाई जाती है, जहां इसे Para los Santos यानी “संतों के लिए” कहा जाता है।
- फिलीपींस में इसे Para sa Yawa कहा जाता है, जिसका अर्थ “शैतान के लिए” होता है। यह मान्यता है कि ऐसा करने से शैतान शांत रहता है और व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुँचाता।
बुरी नज़र और नकारात्मकता से बचाव का विश्वास
कई सभ्यताओं में इस परंपरा को बुरी नजर से बचाव से भी जोड़ा गया है। माना जाता है कि शराब की कुछ बूंदें अगर पहले ही पृथ्वी पर अर्पित कर दी जाएं, तो नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है और माहौल शुभ बनता है। यह विचार आज भी ग्रामीण भारत से लेकर आधुनिक शहरी इलाकों तक देखा जा सकता है।
एक परंपरा जो समय के साथ ढली
हालांकि आज बहुत से लोग इसे केवल “रीति” या “मज़ाक में की जाने वाली हरकत” मानते हैं, लेकिन इसकी जड़ें धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था से गहराई से जुड़ी हैं। यह परंपरा उस दौर की याद दिलाती है जब इंसान प्रकृति, आत्मा और अदृश्य शक्तियों को सम्मान देने में विश्वास रखता था। शराब की ये कुछ बूंदें दरअसल उसी सम्मान और जुड़ाव का प्रतीक हैं।
शराब के इन छींटों में सिर्फ नशा नहीं, बल्कि एक पुरानी सांस्कृतिक कहानी छिपी है—जो श्रद्धा, भय, आदत और परंपरा का संगम है। चाहे इसे देवता के नाम की अर्पण समझो या बुरी शक्ति को दूर करने का तरीका, यह छोटा-सा रिवाज़ आज भी इस बात का एहसास कराता है कि इंसान की हर क्रिया के पीछे कोई न कोई भाव जरूर होता है।









