
अक्सर यह देखा गया है कि जब युवा पढ़ाई या नौकरी के लिए घर या गाँव से बाहर चले जाते हैं, तो पिता की मृत्यु के बाद उन्हें अपनी पैतृक संपत्ति में हिस्सा लेने में मुश्किल आती है। गाँव लौटने पर, यदि दादा या चाचा उन्हें संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर देते हैं, तो यह उनके लिए एक बड़ी समस्या बन जाती है। ऐसी स्थिति में, पोते के पास अपने कानूनी हक का दावा करने के लिए कई विकल्प मौजूद होते हैं। वह कानून की मदद से अपनी संपत्ति का हिस्सा प्राप्त करने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है और विभाजन मुकदमा (Partition Suit) दायर कर सकता है।
दादा की संपत्ति में पोते का कानूनी अधिकार
पारिवारिक संपत्ति के विवाद अक्सर घर पर ही सुलझा लिए जाते हैं, लेकिन अगर यह कानूनी लड़ाई बन जाए तो इसमें लंबा समय और दोनों पक्षों का भारी नुकसान हो सकता है। इसलिए कोर्ट जाने से पहले यह समझना ज़रूरी है कि दादा की संपत्ति में पोते का क्या अधिकार है, खासकर तब जब दादा स्वयं पोते को संपत्ति देना न चाहें। यदि पोते के पिता जीवित हैं, तो संपत्ति का हक पाना आसान होता है, लेकिन उनके न रहने पर पोते के लिए कानूनी रास्ता अधिक जटिल हो जाता है।
दादा की संपत्ति पर पोते का अधिकार
दादा की संपत्ति पर पोते का अधिकार संपत्ति के प्रकार पर निर्भर करता है, जिसका निर्धारण हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत होता है। संपत्ति मुख्य रूप से दो तरह की होती है: पैतृक संपत्ति (जो चार पीढ़ियों तक चली आ रही हो) और स्व-अर्जित संपत्ति (जो व्यक्ति ने खुद कमाई हो)। यदि संपत्ति पैतृक है, तो पोते को उस पर जन्म से ही सीधा अधिकार मिल जाता है, भले ही पिता जीवित हों। ऐसे में, संपत्ति का अधिकार पीढ़ी दर पीढ़ी लागू होता है, यानी पिता के बाद वह पोते को हस्तांतरित हो जाती है।
दादा की निजी संपत्ति पर पोते का अधिकार
अगर दादा ने अपनी खुद से कमाई हुई संपत्ति की कोई वसीयत नहीं बनाई और उनकी मृत्यु हो जाती है, तो उस संपत्ति पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू होता है। इस कानून के तहत, संपत्ति का बँटवारा निर्धारित कानूनी क्रम से किया जाएगा। ऐसी स्थिति में, संपत्ति पर पहला और बराबर का अधिकार दादा की पत्नी (दादी) और उनके सभी बेटे-बेटियों का होता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि बेटे (पोते के पिता) की पहले ही मृत्यु हो चुकी है, तो पोते को भी अपने मृत पिता का हिस्सा पाने का पूरा कानूनी अधिकार मिलता है।
हिंदू उत्तराधिकार कानून के अनुसार
हिंदू उत्तराधिकार कानून के अनुसार, किसी भी पोते को पैतृक संपत्ति (दादा-परदादा से मिली संपत्ति) पर जन्म लेते ही अधिकार मिल जाता है। इसका अर्थ है कि अगर उसके पिता और दादा दोनों जीवित हैं, तब भी वह पोता संपत्ति में अपने हिस्से की माँग कर सकता है और उसका बंटवारा करवा सकता है। हालांकि, यह नियम केवल पैतृक संपत्ति पर लागू होता है। दादाजी ने अपनी कमाई से जो संपत्ति खुद बनाई है, उस पर पोते को सीधे दावा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं मिलता है।
पैतृक संपत्ति में अपने हिस्से का दावा कैसे करें?
पैतृक संपत्ति में अपना कानूनी हक पाने के लिए, सबसे पहले संपत्ति से जुड़े सभी दस्तावेज़ों की गहन जाँच करें, जैसे कि रजिस्ट्री, वसीयत (अगर हो), खसरा-खतौनी और दाखिल-खारिज के रिकॉर्ड। शुरुआती दौर में, बातचीत और रिश्तेदारों की मदद से मामला सुलझाने की कोशिश करें।
यदि विवाद फिर भी नहीं सुलझता है, तो आपको सिविल कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना होगा। इसके लिए, किसी अच्छे वकील की मदद से संपत्ति के बंटवारे का मुकदमा (Partition Suit) दायर करें और कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद आप संपत्ति में अपना हिस्सा प्राप्त कर सकते हैं।







