रांची की रहने वाली रोहिणी कभी एक बड़ी कॉरपोरेट कंपनी में जॉब किया करती थीं। उन्होंने नागपुर से इंजीनियरिंग और एमबीए तक की पढ़ाई की, लेकिन ऑफिस की नौकरी में मन नहीं लगा। तभी एक दिन टीवी पर उन्हें मोती की खेती के बारे में जानकारी मिली — और बस, यहीं से उनकी जिंदगी का रास्ता बदल गया।

बचपन की बात ने जगाई प्रेरणा
रोहिणी मज़ाकिया अंदाज़ में बताती हैं, “बचपन में जब गिट्टी से खेलती थी, तब किसी ने कहा था — हम तो मोती से खेलते हैं!” यही एक लाइन उनके ज़ेहन में बस गई। सालों बाद जब उन्होंने जाना कि असली मोती की खेती भी घर पर की जा सकती है, तो उन्होंने ठान लिया कि अब यही उनका पैशन होगा।
घर की छत पर शुरू की खेती
उन्होंने ट्रेनिंग लेकर छत के केवल 10×20 फीट के छोटे हिस्से में मोती की खेती शुरू कर दी। इसके लिए उन्होंने 10 टब लगाए जिनमें मीठा पानी तैयार किया जाता है। पानी की गुणवत्ता, सीप का चयन, फीडिंग और रोग नियंत्रण जैसी तकनीकें उन्होंने ट्रेनिंग में सीखी। शुरुआत छोटे पैमाने से हुई, लेकिन जब पहला परिणाम मिला तो सभी हैरान रह गए।
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₹45 की लागत से ₹150 का मुनाफा
रोहिणी बताती हैं कि एक मोती तैयार करने में सिर्फ़ 45 रुपये का खर्च आता है, जबकि यह बाज़ार में 200 रुपये तक बिक जाता है। इंडियामार्ट जैसी वेबसाइटों के ज़रिए वह अपने मोती देशभर में बेचती हैं। आज उनकी मासिक आय 60 से 70 हजार रुपये तक पहुंच गई है — वो भी बिना किसी बड़े निवेश के।
बढ़ती डिमांड, घटती निर्भरता
भारत में मोती की खेती अभी सीमित है, जबकि मांग लगातार बढ़ती जा रही है। अधिकतर उच्च गुणवत्ता वाले मोती विदेशों से मंगवाए जाते हैं। ऐसे में रोहिणी जैसी युवा उद्यमी महिलाएं न सिर्फ देश में सप्लाई बढ़ा रही हैं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की मिसाल भी बन रही हैं।
दूसरों के लिए मिसाल बनीं रोहिणी
अब रोहिणी खुद का बिजनेस चला रही हैं और अपने साथ पाँच अन्य महिलाओं को भी जोड़ चुकी हैं। आसपास के लोग उनकी छत पर आकर देखते हैं कि आखिर मोती की खेती कैसे होती है। कई महिलाएं उनसे प्रेरित होकर इस बिजनेस को अपनाने लगी हैं। मुस्कुराते हुए रोहिणी कहती हैं, “सबसे बड़ी खुशी यही है कि अब मैं खुद की बॉस हूं और दूसरों को भी सशक्त बना रही हूं।”








