
भारत में संपत्ति के बँटवारे को लेकर, ख़ासकर जब घर में कई बेटे हों, तो अक्सर विवाद खड़ा हो जाता है। बहुत से लोगों को यह लगता है कि अगर किसी पिता के चार बेटे हैं, तो उन्हें कानूनी रूप से चारों को बराबर हिस्सा देना ही होगा। लेकिन क्या यह सच है? संपत्ति के बँटवारे को लेकर क्या नियम हैं, और क्या पिता अपनी पूरी संपत्ति अपनी मर्जी से किसी एक बेटे को दे सकता है या नहीं, यह जानने के लिए आगे नियमों को समझना ज़रूरी है।
पैतृक संपत्ति में बच्चों का अधिकार
अगर किसी व्यक्ति की संपत्ति पैतृक है, यानी उसे दादा या परदादा से मिली है, तो यह ज़रूरी है कि वह संपत्ति सभी बेटों में बराबर बाँटी जाए। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार, पैतृक संपत्ति पर बेटों के साथ-साथ बेटियों को भी जन्म से ही बराबर का हक मिलता है।
पैतृक संपत्ति का बँटवारा सभी कानूनी वारिसों के बीच बराबर हिस्सों में होता है, भले ही पिता ने वसीयत बनाई हो या नहीं। यदि किसी बेटे की मृत्यु हो चुकी है, तो उसका हिस्सा उसके बच्चों को मिलता है। चूँकि पैतृक संपत्ति पर किसी एक व्यक्ति का पूरा नियंत्रण नहीं होता, इसलिए इसे बाकी सदस्यों की सहमति के बिना बेचना या किसी और को ट्रांसफर करना कानूनी रूप से मान्य नहीं माना जाता है।
स्वयं अर्जित संपत्ति के बँटवारे के नियम
जब कोई व्यक्ति अपनी खुद की कमाई से कोई संपत्ति खरीदता है, तो उसे स्वअर्जित संपत्ति कहा जाता है। ऐसी संपत्ति के मामले में, पिता को पूरा अधिकार होता है कि वह अपनी मर्जी से इसे किसी भी बेटे या बेटी को कम या ज़्यादा दे या किसी को न दे। अगर पिता ने वसीयत बनाई है, तो बँटवारा उसी के अनुसार होगा। लेकिन अगर वसीयत नहीं है, तो संपत्ति आमतौर पर सभी बेटों और बेटियों में बराबर बाँटी जाती है।
पिता की खुद की अर्जित संपत्ति का बंटवारा
पिता द्वारा खुद अर्जित की गई संपत्ति के मामले में, अगर पिता जीवित हैं, तो वह उस संपत्ति का बंटवारा रजिस्ट्री या गिफ्ट डीड बनाकर अपनी इच्छा अनुसार कर सकते हैं। कानूनी तौर पर, वह अपनी अर्जित संपत्ति किसी भी बेटे को न देकर किसी को भी दान भी कर सकते हैं। हालाँकि, पिता के निधन के बाद संपत्ति के बंटवारे का मामला अदालत के ज़रिए तय किया जाता है।









