
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत, हिंदू बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर ही अधिकार प्राप्त हैं। हर परिवार में संपत्ति का बँटवारा होता है, इसलिए यह जानना ज़रूरी है कि पीहर (माता-पिता का घर) और ससुराल की प्रॉपर्टी में बेटी का क्या हिस्सा होता है। भारत में हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म के लोगों पर हिंदू कानून लागू होता है, जो शादी, तलाक़ और संपत्ति के उत्तराधिकार जैसे मामलों को नियंत्रित करता है। यह कानून पुराने धर्मग्रंथों पर आधारित है और समय के साथ न्यायिक फैसलों से विकसित हुआ है। 1956 में, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम सहित कई कानूनों को संहिताबद्ध किया गया था।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 का महत्व
पैतृक संपत्ति से संबंधित कानूनों में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 सबसे ज़रूरी है। यह कानून स्पष्ट रूप से बताता है कि किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति और संयुक्त परिवार की संपत्ति को उसके उत्तराधिकारियों के बीच कैसे बांटा जाएगा और विरासत के नियम क्या होंगे। यह अधिनियम संपत्ति के मालिकाना हक और उसके बंटवारे को कानूनी आधार प्रदान करता है।
हिंदू संपत्ति के उत्तराधिकार के नियम
हिंदू पुरुष और महिला दोनों को यह पूरा अधिकार है कि वे अपनी खुद की कमाई हुई संपत्ति को वसीयत (Will) बनाकर अपनी इच्छा अनुसार किसी को भी दे सकते हैं। हालाँकि, यदि कोई हिंदू व्यक्ति अपनी संपत्ति के लिए कोई मान्य वसीयत छोड़े बिना मर जाता है, तो उस संपत्ति को ‘बिना वसीयत की संपत्ति’ माना जाता है। ऐसे में, वह संपत्ति हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के नियमों के तहत उसके कानूनी उत्तराधिकारियों में बाँट दी जाती है।
माँ की मृत्यु होने पर किसे मिलेगा हक़
निवेश एवं टैक्स सलाहकार बलवंत जैन ने लाइव मिंट की एक रिपोर्ट में बताया है कि माँ की मृत्यु होने पर, बेटी को माँ की संपत्ति में अपने भाई के बराबर हिस्सा पाने का कानूनी अधिकार होता है। इसी तरह, माँ के पति यानी पिता को भी बेटे और बेटी के बराबर हिस्सा मिलता है। यदि माँ की मृत्यु से पहले कोई भाई या बहन गुज़र चुका है, तो उनके बच्चे (यानी माँ के पोते/पोतियाँ) उस हिस्से के कानूनी हकदार होंगे जो उनके माता-पिता को मिलता, यदि वे जीवित होते।
पिता की मृत्यु होने पर किसे मिलेगा अधिकार
कानून के अनुसार, यदि पिता की मृत्यु हो जाती है, तो बेटी को अपनी माँ, दादी और भाइयों के बराबर पैतृक संपत्ति में हिस्सा पाने का पूरा अधिकार होता है। यदि पिता से पहले कोई पुत्र या पुत्री गुज़र गए हों, तो उनके बच्चों (पोते/पोती या नाती/नातिन) को भी संपत्ति में उतना ही हिस्सा मिलेगा जितना उनके माता-पिता को मिलना था।








