
पिता की संपत्ति में बेटे का अधिकार इस बात पर निर्भर करता है कि संपत्ति पैतृक (पुरखों से मिली हुई) है या स्व-अर्जित (पिता ने खुद खरीदी है)। पैतृक संपत्ति पर बेटे का अधिकार जन्म से ही होता है और वह बंटवारे की मांग कर सकता है।
वहीं स्व-अर्जित संपत्ति पर बेटे का जन्म से कोई अधिकार नहीं होता; पिता इसे वसीयत द्वारा किसी को भी दे सकते हैं। यदि पिता वसीयत नहीं बनाते हैं, तो पिता की मृत्यु के बाद बेटा, बेटी और अन्य कानूनी वारिसों का बराबर का हक होता है। संपत्ति के ये नियम हिंदू, मुस्लिम और ईसाई जैसे विभिन्न कानूनों के तहत अलग-अलग होते हैं।
पैतृक संपत्ति पर बेटे का अधिकार
पुश्तैनी संपत्ति (पैतृक संपत्ति) वह संपत्ति होती है जो परिवार में चार पीढ़ियों से बिना बँटे चली आ रही है (यानी परदादा से मिली हुई)। इस प्रकार की संपत्ति में, बेटे का अधिकार जन्म से ही स्थापित हो जाता है। इसका मतलब है कि पिता इस संपत्ति के पूरे मालिक नहीं होते। इसलिए, वह अपने बेटे की सहमति के बिना इस संपत्ति को न तो बेच सकते हैं और न ही किसी को दान कर सकते हैं।
पिता की स्व-अर्जित संपत्ति पर बेटे का अधिकार
कानूनी तौर पर, स्व-अर्जित संपत्ति वह होती है जो पिता ने अपनी मेहनत, नौकरी या बिज़नेस की कमाई से खरीदी हो। इस तरह की संपत्ति पर बेटे का जन्म से कोई अधिकार नहीं होता है। पिता ही इस संपत्ति का पूरा मालिक होता है, और वह इसे बेचने, दान करने या वसीयत करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होता है। बेटा इस मामले में पिता के निर्णय पर कोई रोक नहीं लगा सकता।
स्व-अर्जित संपत्ति में बेटे का अधिकार कब होता है ?
पिता द्वारा अपनी खुद की कमाई से खरीदी गई संपत्ति (स्व-अर्जित संपत्ति) पर बेटे का अधिकार तभी बनता है जब पिता की इच्छा हो या उनकी मृत्यु बिना वसीयत बनाए हो जाए।
- वसीयत के माध्यम से बटवारा – अगर पिता ने वसीयत (Will) बनाई है, तो उन्हें पूरा अधिकार है कि वह अपनी इच्छा से संपत्ति का बँटवारा करें। ऐसी स्थिति में, बेटा केवल उतना ही हिस्सा पा सकता है जितना वसीयत में साफ लिखा गया हो।
- बिना वसीयत पिता की संपत्ति का बँटवारा – यदि किसी पिता की मृत्यु बिना वसीयत (Will) बनाए हो जाती है, तो उनकी पूरी संपत्ति उत्तराधिकार अधिनियम (Succession Act) के नियमों के अनुसार बाँटी जाती है। इस स्थिति को बिना वसीयत के मृत्यु (Intestate Succession) कहा जाता है। ऐसे में, संपत्ति को बेटे, बेटी, पत्नी और अन्य पहले दर्जे के सभी कानूनी वारिसों के बीच बराबर-बराबर बाँटा जाता है। इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि संपत्ति पिता ने खुद खरीदी थी या उन्हें विरासत में मिली थी, कानून की नज़र में सभी वारिसों को एक समान हिस्सा मिलता है।
पैतृक संपत्ति को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला
बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने साफ़ किया है कि पिता द्वारा खुद कमाई गई (स्व-अर्जित) संपत्ति पर उनका पूरा अधिकार होता है। यदि कोई बेटा अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करता या उन्हें परेशान करता है, तो पिता यह फैसला ले सकते हैं कि वह अपनी यह संपत्ति बेटे को नहीं देंगे। वे यह संपत्ति अपनी वसीयत (Will) में किसी और के नाम कर सकते हैं और बेटा इस फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकता।








