पिता की मौत के बाद क्या बेटे को चुकाना होगा कर्ज? जानिए वो सच, जो अधिकतर लोग नहीं जानते!

भारत में Inheritance Debt Rules के तहत वारिसों को तब तक किसी भी कर्ज की जिम्मेदारी नहीं लेनी पड़ती जब तक वे गारंटर या सह-उधारकर्ता न हों। कर्ज केवल मृतक की संपत्ति से चुकाया जाता है। अनसिक्योर्ड और सिक्योर्ड लोन की शर्तें भिन्न होती हैं, और सही कानूनी सलाह इस प्रक्रिया को आसान बना सकती है।

By GyanOK

पिता की मौत के बाद क्या बेटे को चुकाना होगा कर्ज? जानिए वो सच, जो अधिकतर लोग नहीं जानते!
Inheritance Debt Rules

जब कोई व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त करता है, तो उसका लिया हुआ कर्ज (Loan) खत्म नहीं होता। वह बना रहता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या वह कर्ज उसके परिवार, खासकर बच्चों को चुकाना पड़ेगा?
उत्तर है – नहीं, जब तक उन्होंने उस कर्ज के लिए दस्तखत नहीं किए हों।
कर्ज की जिम्मेदारी सिर्फ उसी व्यक्ति की होती है, जिसने कर्ज लिया हो या फिर जो उसके साथ गारंटर/को-उधारकर्ता रहा हो।

बच्चों को माता-पिता का कर्ज चुकाना जरूरी है?

भारतीय कानून साफ कहता है कि सिर्फ माता-पिता का बेटा या बेटी होना किसी कर्ज की कानूनी जिम्मेदारी नहीं बनाता। यानी अगर आपके माता-पिता ने कोई कर्ज लिया था और आप उस कर्ज के दस्तावेज में शामिल नहीं थे (जैसे गारंटर या को-बॉरोअर के रूप में), तो आपसे वह कर्ज नहीं वसूला जा सकता।

लेकिन बात तब बदल जाती है, जब मृतक ने कोई संपत्ति छोड़ी हो—जैसे मकान, गाड़ी, बैंक बैलेंस, गहने आदि। उस स्थिति में लेनदार उस संपत्ति से कर्ज वसूल सकता है, लेकिन आपकी व्यक्तिगत पूंजी से नहीं।

कर्ज वसूली की सीमा क्या होती है?

  • कानून यह तय करता है कि कर्ज की वसूली सिर्फ मृतक की संपत्ति तक ही सीमित होती है।
  • उदाहरण के लिए,
  • अगर किसी व्यक्ति ने ₹1 लाख का कर्ज लिया था और उसके पास ₹2 लाख की संपत्ति है, तो कर्ज उसी से चुका दिया जाएगा।
  • लेकिन अगर संपत्ति की कीमत ₹1 लाख से कम है, मान लीजिए ₹50,000, तो केवल ₹50,000 ही वसूले जा सकते हैं।
  • बाकी बचा हुआ कर्ज माफ हो जाता है।

अनसिक्योर्ड लोन (Unsecured Loan) – क्या होता है और उसका निपटारा कैसे होता है?

Unsecured Loan वह होता है जिसमें कर्ज के बदले कोई चीज गिरवी नहीं रखी जाती, जैसे:

  • पर्सनल लोन
  • एजुकेशन लोन
  • क्रेडिट कार्ड का बकाया

इन मामलों में कर्ज की वसूली मृतक की बची संपत्ति से की जाती है।
अगर संपत्ति पर्याप्त नहीं है या है ही नहीं, तो बैंक उस कर्ज को वसूल नहीं कर सकता और उसे माफ कर देता है

सिक्योर्ड लोन (Secured Loan) – जैसे होम लोन और कार लोन

Secured Loan के बदले कोई मूल्यवान संपत्ति गिरवी रखी जाती है—जैसे मकान, गाड़ी।
अगर कर्जदार की मृत्यु हो जाए और कर्ज बाकी हो, तो:

  • बैंक उस संपत्ति को कब्जे में लेकर बेच सकता है और अपना पैसा वसूल सकता है।
  • अगर परिवार उस संपत्ति को बचाना चाहता है, तो उन्हें कर्ज अपने नाम पर ट्रांसफर करवाना होगा।
  • ट्रांसफर तभी होगा जब बैंक को यकीन हो कि आप उस कर्ज को चुका सकते हैं – यानी आपकी क्रेडिट रिपोर्ट, आय और अन्य योग्यता देखी जाएगी।

अगर आप कर्ज नहीं लेना चाहते, तो बैंक कानूनी तरीके से संपत्ति जब्त कर लेता है।

अगर वारिस गारंटर या को-बॉरोअर हो तो क्या होगा?

यह स्थिति सबसे गंभीर होती है। अगर आपने गारंटर (Guarantor) या को-बॉरोअर (Co-Borrower) के रूप में कर्ज के लिए दस्तखत किए हैं, तो भले ही कर्ज आपने खुद न लिया हो, आपको वह पूरा चुकाना पड़ेगा

ऐसा इसलिए क्योंकि आपने कर्ज लेते समय यह जिम्मेदारी ली थी कि अगर मुख्य उधारकर्ता पैसे न चुका पाए, तो आप भरपाई करेंगे।
इसलिए, दस्तखत करने से पहले इस बात को अच्छी तरह समझना जरूरी है।

क्रेडिट कार्ड का बकाया और एड-ऑन कार्ड की स्थिति

क्रेडिट कार्ड का बकाया अनसिक्योर्ड लोन होता है।
अगर कर्जदार की मृत्यु हो जाती है, तो बैंक मृतक की संपत्ति से ही बकाया वसूल करता है।

अगर आप Add-on कार्ड होल्डर थे (जैसे बच्चों या जीवनसाथी को मिला अतिरिक्त कार्ड), तो यह इस बात पर निर्भर करता है कि:

  • आपने कार्ड का इस्तेमाल किस हद तक किया?
  • खर्च करने का फैसला किसका था?

कुछ मामलों में बैंक यह कह सकता है कि आपने खुद खर्च किया है, तो जिम्मेदारी आपकी है।
इसलिए ऐसे मामलों में कानूनी सलाह लेना बहुत जरूरी होता है।

कानूनी या वित्तीय सलाह क्यों जरूरी है?

कई बार बैंक या लेनदार परिवार को डराने या भावनात्मक रूप से दबाव डालने की कोशिश करते हैं, ताकि वे कर्ज चुका दें—even जब उनकी कोई कानूनी जिम्मेदारी नहीं बनती।

ऐसी स्थिति में एक वकील या फाइनेंशियल एडवाइजर की मदद से आप अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं।
वकील यह सुनिश्चित करेगा कि:

  • कर्ज की वसूली सिर्फ संपत्ति से हो।
  • आपसे कोई गैरकानूनी वसूली न की जाए।
  • जरूरत हो तो कोर्ट से सुरक्षा मिल सके।

वसीयत और लाइफ इंश्योरेंस का क्या रोल होता है?

अगर मृतक ने अपनी जिंदगी में वसीयत (Will) बनाई थी या लाइफ इंश्योरेंस लिया था, तो:

  • वसीयत से संपत्ति का बंटवारा आसान हो जाता है।
  • इंश्योरेंस क्लेम से परिवार को कर्ज चुकाने में मदद मिल सकती है।

इससे वारिसों को अचानक आने वाले वित्तीय बोझ से राहत मिलती है।

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