अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति (Geopolitics) के शतरंज पर अमेरिका ने एक ऐसा कदम उठाया है, जिसने दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई बहुचर्चित मुलाकात के ठीक बाद, अमेरिका ने भारत को एक बड़ी राहत देते हुए ईरान स्थित चाबहार पोर्ट (Chabahar Port) पर लगाए गए कड़े प्रतिबंधों को हटाने का ऐलान किया है।

ये फैसला भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक (diplomatic) और रणनीतिक (strategic) जीत है, क्योंकि ये बंदरगाह भारत की मध्य एशिया और यूरोप तक पहुँच के लिए एक जीवन रेखा की तरह है। लेकिन अमेरिका के इस अचानक बदले हुए रुख के पीछे की कहानी सिर्फ भारत को खुश करना नहीं, बल्कि चीन पर दबाव बनाने और अपनी शर्तों पर ट्रेड डील (Trade Deal) को अंजाम तक पहुँचाने की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है।
प्रतिबंधों का हटना भारत के लिए क्यों है बड़ी खुशखबरी?
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने ये स्पष्ट कर दिया है कि भारत को चाबहार पोर्ट के संचालन के लिए अमेरिकी प्रतिबंधों से छह महीने की छूट दी जाएगी। ये छूट 29 अक्टूबर, 2025 से प्रभावी हो गई है। याद दिला दें कि कुछ समय पहले ही, 29 सितंबर को अमेरिका ने इस बंदरगाह के संचालन पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे, जिससे भारत की चिंताएं बढ़ गई थीं । इन प्रतिबंधों का मतलब था कि इस पोर्ट का इस्तेमाल करने वाली किसी भी कंपनी पर अमेरिका भारी जुर्माना लगा सकता था।
लेकिन अब इस यू-टर्न से भारत ने राहत की सांस ली है। ये भारत के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत ने मई 2024 में इस बंदरगाह को संचालित करने के लिए ईरान के साथ 10 साल का एक लंबा समझौता किया था। चाबहार पोर्ट भारत के लिए सिर्फ एक बंदरगाह नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संपत्ति है।
चाबहार: पाकिस्तान को बाईपास कर चीन को घेरने का भारतीय हथियार
चाबहार पोर्ट की अहमियत को समझने के लिए हमें इसके रणनीतिक महत्व को जानना होगा। ये बंदरगाह ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है और भारत को पाकिस्तान को पूरी तरह से बाईपास करते हुए अफगानिस्तान और संसाधन-संपन्न मध्य एशियाई देशों तक सीधा व्यापारिक मार्ग प्रदान करता है। ये भारत के अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (International North-South Transport Corridor – INSTC) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भारत को रूस और यूरोप से जोड़ने का काम करता है । इस गलियारे के चालू होने से माल ढुलाई की लागत में 30% और समय में 40% तक की कमी आने का अनुमान है।
इससे भी बढ़कर, चाबहार पोर्ट, चीन द्वारा पाकिस्तान में विकसित किए जा रहे ग्वादर पोर्ट (Gwadar Port) का सीधा जवाब है । ग्वादर पोर्ट चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ (String of Pearls) रणनीति का एक अहम हिस्सा है, जिसके जरिए वह भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है। चाबहार में अपनी उपस्थिति के माध्यम से, भारत न केवल इस घेराबंदी को तोड़ता है, बल्कि हिंद महासागर में चीन की गतिविधियों पर भी करीब से नजर रख सकता है। भारत ने इस बंदरगाह के विकास में अरबों डॉलर का निवेश किया है, जिसकी शुरुआत 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय हुई थी।
अमेरिका के यू-टर्न के पीछे की असली कहानी, एक तीर से दो निशाने
अमेरिका ने जिस जल्दबाजी में चाबहार पर प्रतिबंध लगाए थे, उतनी ही तेजी से उन्हें हटाया भी है। इस फैसले के पीछे एक नहीं, बल्कि दो बड़े भू-राजनीतिक कारण हैं। पहला कारण भारत को अपनी तरफ करना है, और दूसरा चीन पर नकेल कसना है। हाल ही में दक्षिण कोरिया में डॉनल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच एक ट्रेड डील (Trade Deal) को लेकर बैठक हुई । ट्रंप ने बैठक के बाद ऐलान किया कि चीन के साथ एक समझौता हो गया है, जिसके तहत अमेरिका चीनी सामानों पर टैरिफ कम करेगा और बदले में चीन बड़ी मात्रा में अमेरिकी सोयाबीन खरीदेगा।
लेकिन इस कहानी में एक पेंच है। ये सारे ऐलान सिर्फ ट्रंप की तरफ से किए गए हैं। शी जिनपिंग ने समझौते की पुष्टि नहीं की और केवल ये कहा कि वह चीन वापस जाकर इस पर व्यापक चर्चा करेंगे । इससे ट्रंप को ये डर सता रहा है कि कहीं चीन इस डील से मुकर न जाए। यहीं पर भारत की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। चाबहार पोर्ट से प्रतिबंध हटाकर अमेरिका भारत को एक रणनीतिक बढ़त दे रहा है। एक मजबूत भारत और एक क्रियाशील चाबहार पोर्ट, चीन के ग्वादर पोर्ट के महत्व को कम करता है और चीन पर एक अप्रत्यक्ष दबाव बनाता है। ये ट्रंप की चीन को ये याद दिलाने की रणनीति है कि अगर वह डील से पीछे हटता है, तो अमेरिका के पास भारत के रूप में एक मजबूत रणनीतिक साझेदार है जो इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित कर सकता है।
भारत-अमेरिका ट्रेड डील का भविष्य
अमेरिका के इस कदम का दूसरा बड़ा मकसद भारत के साथ अटकी हुई ट्रेड डील (Trade Deal) को जल्द से जल्द फाइनल करना है । पिछले कुछ समय से दोनों देशों के बीच व्यापार को लेकर बातचीत चल रही है, लेकिन कुछ मुद्दों पर सहमति नहीं बन पा रही है। अमेरिका ने पहले चाबहार पर प्रतिबंध लगाकर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की थी, और अब प्रतिबंध हटाकर वह एक सकारात्मक संकेत दे रहा है। ये भारत के लिए एक बड़ा अवसर है कि वह अपनी शर्तों पर एक संतुलित व्यापार समझौता कर सके।
ये देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस कूटनीतिक अवसर का कैसे लाभ उठाता है। चाबहार पर प्रतिबंधों से मिली ये राहत भारत के लिए एक बड़ी जीत है, लेकिन ये भी स्पष्ट है कि ये वैश्विक शक्ति की बिसात पर एक बड़ी चाल का हिस्सा है। भारत का अगला कदम न केवल भारत-अमेरिका संबंधों की दिशा तय करेगा, बल्कि दक्षिण एशिया में शक्ति के नए समीकरणों को भी जन्म देगा।
 
					







