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आप सेना में रहने लायक नहीं..’ सेना के अधिकारी की बर्खास्तगी को सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया सही

सेना की पंथनिरपेक्षता और अनुशासन को लेकर आया बड़ा फैसला! जानिए किस कारण सेना ने एक अधिकारी को बाहर किया और सुप्रीम कोर्ट ने उसे क्यों सही ठहराया — हर भारतवासी के लिए जरूरी बात।

By Manju Negi

भारतीय सेना में अनुशासन और पंथनिरपेक्षता को बहुत ऊंचा महत्व दिया जाता है। हर सैनिक के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने व्यक्तिगत विश्वासों से ऊपर उठकर सेना के नियमों और आदेशों का पालन करें। सेना का लक्ष्य हमेशा सैनिकों के बीच एकजुटता बनाए रखना होता है, जिससे उनकी ताकत और प्रभावशीलता बनी रहे। इसलिए, किसी भी सैनिक का अनुशासनहीन व्यवहार न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि पूरे दस्ते की एकता पर भी प्रभाव डालता है। सेना में अनुशासन टूटने से समग्र सैनिक मनोबल कमजोर पड़ता है, जिसे किसी भी कीमत पर सहन नहीं किया जाता।

आप सेना में रहने लायक नहीं..' सेना के अधिकारी की बर्खास्तगी को सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया सही

धार्मिक प्रतिबंधों का पालन सेना में अनिवार्य

सेना में धार्मिक विविधता होती है, लेकिन सभी सैनिकों से अपेक्षा की जाती है कि वे सामूहिक आयोजनों में सहभागी बनें, जो सेना के अनुशासन का हिस्सा होते हैं। कई बार, सैनिकों को धार्मिक कार्यक्रमों या परेड में शामिल होना पड़ता है, जो सैनिकों की अपनी पहचान से ऊपर उठकर समुदाय की भावना को मजबूत करता है। यदि कोई सैनिक धार्मिक कारणों का हवाला देकर इस प्रकार के आयोजनों में भाग लेने से मना करता है, तो यह अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है और सेना के नियमों के खिलाफ माना जाता है।

केस का संक्षिप्त परिचय

हाल ही में, एक ईसाई सेना अधिकारी ने सेना के धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से मना किया। उन्होंने मंदिर के गर्भगृह में पूजा में शामिल होने से इंकार किया, जो सेना के अनुशासन और एकता के खिलाफ था। इस व्यवहार के कारण उनकी सेवा समाप्त कर दी गई। अधिकारी ने इस कार्रवाई को चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सेना की कार्रवाई को उचित ठहराया, यह कहते हुए कि सेना के हितों के लिए अनुशासन का पालन अनिवार्य है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और तर्क

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि सेना में अनुशासन का पालन सर्वोपरि है। व्यक्ति की धार्मिक मान्यताएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सेना का अनुशासन उनसे ऊपर है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में जहां सैनिक अपने धार्मिक विश्वास के नाम पर अनुशासन की अवहेलना करता है, तो उसे सेना में रहने का अधिकार नहीं होता। कोर्ट ने यह भी कहा कि सेना के सभी सदस्यों को बिना भेदभाव एक-दूसरे के धार्मिक विश्वासों का सम्मान करना चाहिए और सामूहिक आदेशों का पालन करना चाहिए।

सेना के लिए सीख

यह निर्णय सेना और समाज दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है। सेना में धार्मिक सहिष्णुता और अनुशासन का संतुलन बनाए रखना जरूरी है, ताकि देश की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। सैनिकों को अपने कर्तव्यों और अनुशासन के साथ धार्मिक विश्वासों के बीच संतुलन रखना होगा। यदि कोई इस संतुलन को तोड़ता है तो उसका सेना में स्थान नहीं रह जाता। सेना में अनुशासन और एकता को हर हाल में बनाए रखना प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि ये दो बातें ही सेना की असली ताकत हैं।

Author
Manju Negi
अमर उजाला में इंटर्नशिप करने के बाद मंजु GyanOk में न्यूज टीम को लीड कर रही है. मूल रूप से उत्तराखंड से हैं और GyanOk नेशनल और राज्यों से संबंधित न्यूज को बारीकी से पाठकों तक अपनी टीम के माध्यम से पहुंचा रही हैं.

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