उत्तर प्रदेश को चार नए राज्यों में विभाजित करने की चर्चा फिर से गरमा रही है। यह प्रस्ताव राज्य के विकास और प्रशासनिक सुधारों से जुड़ा बताया जा रहा है, हालांकि अभी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। इस पर यूपी के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है की यूपी की एकता मे ही भलाई है, लेकिन देखना होगा की उत्तरप्रदेश कब तक यूनाइटेड रह पाता है।

विभाजन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
उत्तर प्रदेश विभाजन का विचार नया नहीं है। 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने विधानसभा से प्रस्ताव पारित कराया था, जिसमें राज्य को पूर्वांचल, बुंदेलखंड, अवध प्रदेश और पश्चिम प्रदेश में बांटने की बात कही गई। केंद्र सरकार ने इसे लौटा दिया था, लेकिन मांग समय-समय पर उठती रही। 2000 में उत्तराखंड बनने के बाद भी यूपी की विशालता के कारण यह बहस बनी हुई है।
प्रस्तावित चार नए राज्य
प्रस्ताव के अनुसार, पूर्वांचल में गोरखपुर, वाराणसी जैसे 22-32 पूर्वी जिले शामिल हो सकते हैं, जिनकी राजधानी गोरखपुर या वाराणसी हो। बुंदेलखंड झांसी, बांदा, ललितपुर समेत 7 जिले लेगा, प्रयागराज या झांसी केंद्र बनेगा। अवध प्रदेश लखनऊ, अयोध्या सहित 14-21 मध्य जिले कवर करेगा। पश्चिम प्रदेश या हरित प्रदेश में मेरठ, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर जैसे 22-25 जिले आएंगे।
संभावित फायदे
विभाजन से प्रशासनिक दक्षता बढ़ेगी क्योंकि विशाल राज्य में विकास असमान रहता है। छोटे राज्य संसाधनों पर बेहतर फोकस कर पाएंगे, जैसे पूर्वांचल कृषि और पर्यटन पर, बुंदेलखंड जल संConservation पर। स्थानीय मुद्दों का तेज समाधान होगा और आर्थिक विकास तेज होगा, जैसा तेलंगाना में देखा गया। नई राजधानियां रोजगार बढ़ाएंगी।
चुनौतियां और नुकसान
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एकता पर जोर देते हुए विभाजन का विरोध किया है, कहा कि यूपी की ताकत एकजुटता में है। नए राज्यों पर केंद्र से विशेष पैकेज की जरूरत पड़ेगी, जो गरीब क्षेत्रों को नुकसान पहुंचा सकता है। सीमाओं, राजस्व बंटवारे और राजनीतिक प्रभाव में कमी जैसे मुद्दे उभरेंगे।
राजनीतिक प्रभाव
यूपी से 80 लोकसभा सीटें हैं, जो राष्ट्रीय राजनीति तय करती हैं। चार राज्य बनने से शक्ति बंट जाएगी, नौ प्रधानमंत्रियों वाले राज्य का दबदबा कम होगा। विपक्षी दल इसे चुनावी स्टंट बता रहे, जबकि समर्थक विकास से जोड़ते हैं। 2027 तक जनगणना और परिसीमन से बहस तेज हो सकती है।
संवैधानिक प्रक्रिया
अनुच्छेद 3 के तहत राष्ट्रपति की सिफारिश पर संसद विधेयक पारित करेगी। राज्य विधानसभा प्रस्ताव भेज सकती है, लेकिन अंतिम फैसला केंद्र का। प्रक्रिया महीनों या वर्षों ले सकती है, जैसे तेलंगाना में हुआ। जनता की मांग जरूरी मानी जाती है।
जनता की प्रतिक्रियाएं
सोशल मीडिया पर पूर्वांचल और बुंदेलखंड समर्थक सक्रिय हैं, लेकिन पश्चिम यूपी में हरित प्रदेश की मांग जोर पकड़ रही। किसान संगठन और स्थानीय नेता आंदोलन की तैयारी में हैं। विकास के नाम पर समर्थन है, लेकिन एकता के डर से विरोध भी।
आर्थिक निहितार्थ
यूपी ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी का लक्ष्य लेकर चल रहा है। विभाजन से हर क्षेत्र विशेषज्ञता हासिल कर सकता है, लेकिन शुरुआती खर्च और संसाधन बंटवारा चुनौती बनेगा। निवेश आकर्षित करने में छोटे राज्य बेहतर साबित होते हैं।
भविष्य की संभावनाएं
2025-27 में परिसीमन आयोग की रिपोर्ट से यह मुद्दा हलचल मचा सकता है। योगी सरकार एकता पर अड़ी है, लेकिन क्षेत्रीय असंतोष बढ़ा तो केंद्र दखल दे सकता है। जनमत सर्वेक्षण जरूरी होंगे। राज्य अब 75 जिलों वाला है, नए जिले बन रहे हैं जो विकेंद्रीकरण दिखाते हैं।









