
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI एक्ट) के 20 वर्ष पूरे होने पर अपनी टिपण्णी देते हुए इसके कमजोर पड़ने की बात कहि है। उनका कहना है की जो कानून 20 वर्ष पहले शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के उद्देश्य से बनाया गया था, आज उसकी हकीकत कुछ और है। वर्ष 2019 से पहले अधिकार आधारित कानून बनते थे, जिसकी शुरुआत RTI एक्ट से हुई थी, हालांकि 2019 में संसोधन से इसका मकसद अधिकारों को कमजोर करना बन गया है।
जयरात रमेश की माने तो जब आरटीआई एक्ट बना था, तो इसे स्टैंडिंग कमेटी को भेजा था। जहाँ कई सिफारिशों के बाद इस कानून को मान लिया गया था, कानून पास होने पर इन संसोधन के साथ पारित हुआ था। वहीं 2019 में मोदी सरकार ने स्थाई समिति के लिए किए गए संसोधनों को नहीं माना है।
क्यों किया गया संशोधन?
मोदी सरकार के इन संशोधनों के पीछे कई कारण थे, जिनमें से मुख्य कारण निम्नलिखित है।
- पीएम ने कहा था की करोड़ों लोगों का बोगस राशन कार्ड है, लेकिन आरटीआई की जाँच में यह दावे फर्जी पाए गए।
- आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक नोटबंदी के 4 घंटे पहले आरबीआई की सेन्ट्रल कमिटी की बैठक में कहा गया था की नोटबंदी से काले धन और नकली नोटों पर कोई असर नहीं होगा।
- सीआईसी के मुख्या ने निर्णय दिया की पीएम की तथाकथित डिग्री MA इन एंटायर पॉलिटिक्ल साइंस की जानकारी हासिल होनी चाहिए, जो एक बड़ा निर्णय था।
- जानकारी में पूछा गया की कितना काला धन वापस आया तो जवाब में आरटीआई ने कहा की कोई काला धन वापस नहीं आया।
- किसी ने आरटीआई में एप्लीकेशन पूछा की बकेरेदारों की लिस्ट दिखाइए तो बताया गया की लिस्ट आरबीआई ने PMO में भेज दी है।
RTI को कमजोर करने की कोशिश जारी
वर्ष 2019 में जयराम रमेश ने मोदी सरकार के इस फैसले को लेकर एससी में चुनौती दी थी, लेकिन 6 साल बाद भी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। 20 साल बाद CIC में न कोई मुखिया है और 7 इन्फॉर्मेशन कमिश्नर की नियुक्ति नहीं की गई है, पिछले साल में बार में आया समय आया है जब CIC ही नहीं है। इससे सरकार का यही मकसद नजर आ रहा है की वह आरटीआई को कमजोर करके नजरअंदाज कर रही है।