
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में नौकरी सिर्फ ऑफिस तक सीमित नहीं रहती। काम का समय खत्म होने के बाद भी लगातार आने वाले कॉल, मैसेज और ईमेल कर्मचारी की निजी जिंदगी में दखल देते रहते हैं। कई लोग इसे न चाहते हुए भी ‘कंपनी कल्चर’ मानकर सहते रहते हैं। लेकिन यह किसी कर्मचारी की निजी जिंदगी में मानसिक तनाव पैदा कर सकता है। ऐसे में ऑस्ट्रेलिया ने इस समस्या का एक मजबूत समाधान ‘Right to Disconnect’ कानून, पेश किया है, जो अब आधिकारिक रूप से लागू हो चुका है।
कर्मचारियों को मिला ‘डिस्कनेक्ट’ होने का कानूनी अधिकार
नए कानून के तहत कर्मचारी ड्यूटी टाइम खत्म होने के बाद बॉस के कॉल, मैसेज या ईमेल को बिना डर के नज़रअंदाज़ कर सकते हैं।
इसका मतलब—ऑफिस का समय खत्म, तो आपकी जिम्मेदारी भी खत्म।
- नियोक्ता (Employer) पर संपर्क करने का प्रतिबंध नहीं है
- लेकिन कर्मचारी को जवाब देने की बाध्यता नहीं है
- जब तक यह साबित न हो जाए कि इनकार “अनुचित” है
बॉस-कर्मचारी विवाद पहले आपस में ही सुलझेंगे
कानून में यह भी साफ लिखा गया है कि यदि इस अधिकार को लेकर कोई विवाद पैदा होता है, तो पहले दोनों पक्षों को खुद मिलकर समाधान निकालने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन अगर समझौता नहीं हो पाता, तो मामला Fair Work Commission (FWC) तक जाएगा ।FWC जरूरत पड़ने पर दोनों में से किसी भी पक्ष को आदेश जारी कर सकता है, यदि बॉस लगातार परेशान कर रहा है, तो उसे रोकने का आदेश और यदि कर्मचारी का ‘जवाब न देना’ अनुचित है, तो उसे जवाब देने का आदेश।
नहीं माना आदेश, तो भारी भरकम जुर्माना
यदि ऑस्ट्रेलिया सरकार द्वारा जारी इस कानून को कोई तोड़ता है तो उस पर कड़े जुर्माने का प्रावधान रखा गया है, यदि वह कर्मचारी है तो उसे लगभग ₹10 लाख तक जुर्माना और अगर कंपनी (Employer) ऐसा करता है तो उनपर ₹53 लाख तक का जुर्माना लागू किया जाएगा।
क्यों जरूरी था यह कदम?
- लगातार कॉल और मैसेज मानसिक दबाव बढ़ाते हैं
- घर पर भी कर्मचारी का दिमाग ऑफिस मोड में रहता है
- निजी जीवन और परिवार से कटाव बढ़ता है
- रिलैक्सेशन टाइम खत्म हो जाता है
- बर्नआउट (Burnout) के मामले बढ़ते हैं
क्या भारत जैसे देशों में भी आ सकता है ऐसा कानून?
दुनिया में काम का कल्चर तेजी से बदल रहा है। कई देशों में वर्क-लाइफ बैलेंस को लेकर गंभीर बातचीत शुरू हो चुकी है। भारत में भी इस तरह के अधिकार की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है, खासकर आईटी और कॉर्पोरेट सेक्टर में। अगर भारत इस दिशा में कदम उठाता है, तो करोड़ों लोगों की मानसिक सेहत और निजी जिंदगी में बड़ा सुधार आ सकता है।








