
भारतीय संस्कृति में भोजन सिर्फ शरीर की आवश्यकता नहीं, बल्कि एक पवित्र अनुष्ठान माना जाता है। हर अनाज के दाने में देवत्व का वास बताया गया है। देवी अन्नपूर्णा को भोजन की अधिष्ठात्री माना जाता है, तो समृद्धि की प्रतीक देवी लक्ष्मी को अन्न का रूप समझा जाता है। यही कारण है कि वास्तु शास्त्र में भोजन बनाने और खाने से जुड़े कुछ सिद्धांतों का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि सही तिथियों और शुद्ध वातावरण में बना भोजन जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और सम्पन्नता लाता है।
शीतला अष्टमी: ठंडे भोग का महत्व
शीतला अष्टमी का दिन विशेष रूप से माता शीतला की आराधना के लिए समर्पित होता है। इस दिन घरों में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता। मान्यता है कि इस दिन चूल्हा जलाने से माता नाराज हो जाती हैं। इसके बजाय पिछले दिन बनाए गए भोजन को ठंडा करके माता को भोग लगाया जाता है। इसे “बसौड़ा” कहा जाता है। यह परंपरा स्वच्छता और संक्रमण से बचाव के प्रतीक के रूप में भी मानी जाती है, क्योंकि माता शीतला को रोगनाशक देवी के रूप में पूजते हैं।
दिवाली: विशेष व्यंजनों से प्रसन्न होती हैं लक्ष्मी माता
दिवाली को धन, वैभव और नए आरंभों का पर्व माना गया है। इस दिन घर की साफ-सफाई, दीप जलाना और भोग लगाना विशेष महत्व रखता है। परंपरा के अनुसार, दिवाली के दिन साधारण रोटी नहीं बनाई जाती। इसके स्थान पर पूजा के लिए खीर, पूड़ी, मालपुए और अन्य शुभ व्यंजन बनाए जाते हैं। ऐसा विश्वास है कि रोटी जैसे रोजमर्रा के भोजन की बजाय विशेष प्रसाद बनाने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में सौभाग्य का वास करती हैं।
श्राद्ध पक्ष: पितरों के प्रति श्रद्धा का समय
श्राद्ध के दिनों में रोटी बनाना शुभ नहीं माना जाता। यह समय पितरों को याद करने, उनके लिए विशेष भोजन तैयार करने और उन्हें अर्पित करने का होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन बनाए गए व्यंजन सीधे पितरों तक पहुंचते हैं और उनका आशीर्वाद परिवार को मिलता है। इसलिए इन तिथियों पर भोजन बनने और परोसने में श्रद्धा और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
शरद पूर्णिमा: अमृतमयी रात और खीर का महत्त्व
शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा का अमृत बरसता है, ऐसा कहा जाता है। यह रात देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस दिन घरों में रोटी नहीं बनाई जाती, बल्कि खीर और पूड़ी का भोग माता को अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन पूर्णिमा की चांदनी में रखा भोजन अमृतमय हो जाता है। इसीलिए शरद पूर्णिमा पर विशेष रूप से खीर बनाया जाता है और उसे चंद्रमा की चांदनी में रखकर प्रसाद किया जाता है।
मृत्यु के उपरांत रसोई से परहेज
वास्तु शास्त्र और परंपरा दोनों ही इस बात पर बल देते हैं कि घर में किसी की मृत्यु होने के बाद कुछ समय तक रोटी या कोई भी भोजन नहीं बनाना चाहिए। उस समय घर का वातावरण शोकग्रस्त होता है, और अन्न को अपवित्र माना जाता है। इस अवधि में शुद्धता बनाए रखना और आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करना ही सबसे उपयुक्त कर्म बताया गया है।
सकारात्मक ऊर्जा और शुद्धता का संदेश
वास्तु शास्त्र इन सभी नियमों के माध्यम से एक ही संदेश देता है भोजन केवल शरीर का ईंधन नहीं, बल्कि आत्मा की ऊर्जा है। जब हम भोजन को श्रद्धा से तैयार करते हैं और सही तिथियों का सम्मान करते हैं, तो यह अन्न हमारे घर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि लाता है। इसलिए कहा जाता है कि “भोजन वही जो प्रेम और पवित्रता से बना हो”।









