
जमीन के विवाद में SC/ST एक्ट के तहत झूठा मुकदमा दर्ज कराने के मामले में, विकास कुमार को दोषी करार दिया गया है। SC/ST एक्ट के विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने उन्हें पाँच साल की जेल की सज़ा सुनाई है। इसके साथ ही, दोषी पर दस हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है और निर्देश दिया गया है कि अगर इस मामले में उसे कोई सरकारी राहत राशि मिली हो, तो उसे तुरंत वापस लिया जाए।
झूठे मुकदमों पर न्यायालय की सख्ती
न्यायालय ने अपने आदेश में साफ कहा है कि केस दायर करने वाला व्यक्ति (वादी) मुकदमे का सबसे ज़रूरी गवाह होता है, और उसे अदालत के सामने सच बोलना चाहिए। कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि अगर झूठे मुकदमे दर्ज करने वालों को सख्त सज़ा नहीं दी गई, तो कानून का गलत इस्तेमाल (दुरुपयोग) तेज़ी से बढ़ेगा।
जमीन विवाद और झूठे आरोप
सरकारी वकील अरविंद मिश्रा के अनुसार, विकास कुमार ने 29 जून 2019 को पीजीआई थाने में एक एफआईआर दर्ज कराई थी। विकास ने आरोप लगाया था कि ओम शंकर यादव, अरुण कुमार, नीतू यादव और अखिलेश पाल ने उसकी जमीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश की, उसे जातिसूचक गालियाँ दीं, और जान से मारने की धमकी देकर जमीन से भगा दिया। हालांकि, पुलिस की जाँच में यह बात सामने आई कि आरोपी घटना स्थल पर मौजूद नहीं थे, और स्वतंत्र गवाहों ने भी ऐसी किसी घटना के होने से साफ इनकार कर दिया।
ज़मीन और कर्ज़ से शुरू हुआ विवाद
जाँच से पता चला कि विकास कुमार के परिवार की ज़मीन पर बैंक से कर्ज़ लिया गया था। जब कर्ज़ नहीं चुकाया गया, तो बैंक ने उस ज़मीन को नीलाम कर दिया। इस नीलामी में, ओम शंकर यादव के भांजे कमलेश ने वह ज़मीन खरीदी थी। इसी ज़मीन के विवाद के कारण बाद में कमलेश की हत्या कर दी गई थी। यह हत्या का मामला अभी कोर्ट में चल रहा है, जिसकी पैरवी (कानूनी कार्रवाई) ओम शंकर यादव कर रहे थे।
झूठा एससी/एसटी केस दर्ज करने पर सज़ा
अभियोजन पक्ष (सरकारी वकील) के अनुसार, दोषी ने पिछली कानूनी कार्रवाई से पीछा छुड़ाने और दबाव बनाने के लिए एक व्यक्ति पर एससी/एसटी एक्ट के तहत झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया था। जब जाँच अधिकारी ने पाया कि घटना असत्य है, तो उन्होंने 26 दिसंबर 2019 को कोर्ट में अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी थी। सभी सबूतों और गवाहों के बयानों को देखते हुए, अदालत ने आरोपी विकास कुमार को दोषी ठहराया।









