
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एक अहम टिप्पणी में कहा है कि कोई भी वयस्क महिला, भले ही वह शादीशुदा हो, अपनी इच्छा से किसी भी व्यक्ति के साथ रहने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है। कोर्ट ने साफ़ किया कि संविधान द्वारा दिए गए व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीवनसाथी चुनने के मौलिक अधिकार को परिवार के दबाव के कारण छीना नहीं जा सकता।
यह टिप्पणी तब आई जब धीरज नायक नामक व्यक्ति ने कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि संध्या नाम की महिला उनके साथ रहना चाहती है, लेकिन उसके माता-पिता उसे ज़बरदस्ती रोके हुए हैं और उसकी आज़ादी छीन रहे हैं।
महिला ने हाईकोर्ट में स्वेच्छा से साथ रहने का बयान दिया
शुक्रवार को पुलिस सुरक्षा में महिला को हाईकोर्ट के सामने पेश किया गया। अदालत के सामने महिला ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह बालिग (Adult) है और याचिकाकर्ता धीरज नायक के साथ अपनी मर्ज़ी से रहना चाहती है। महिला ने यह आरोप भी लगाया कि उसके माता-पिता उसकी इच्छा के खिलाफ़ उसे घर में रोककर दबाव बना रहे हैं।
वयस्क महिला का निर्णय सर्वोपरि
महिला के माता-पिता ने कोर्ट में दलील दी कि चूँकि वह पहले से विवाहित है, इसलिए उसे अपने पति के साथ रहना चाहिए और परिवार तथा समाज की मर्यादा को देखते हुए उसका वर्तमान फैसला सही नहीं है। हालाँकि, दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून की नज़र में सबसे ज़रूरी बात यह है कि महिला वयस्क (Adult) है और उसे अपने जीवन के बारे में खुद निर्णय लेने का पूरा अधिकार है।
विवाह से व्यक्तिगत स्वतंत्रता खत्म नहीं होती: कोर्ट
हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि विवाह कर लेने से किसी महिला की निजी स्वतंत्रता समाप्त नहीं होती। यदि वह अपनी मर्ज़ी से किसी दूसरे व्यक्ति के साथ रहना चाहती है, तो उसे रोका नहीं जा सकता। इससे पहले, 2 दिसंबर को हुई सुनवाई के बाद, महिला का बयान भी दर्ज किया गया था। महिला ने न्यायिक दंडाधिकारी के सामने लगातार यह कहा था कि उसके माता-पिता ने उसे ज़बरदस्ती अपने नियंत्रण में रखा हुआ है। कोर्ट ने महिला की इच्छा का सम्मान करते हुए यह फ़ैसला सुनाया।
महिला की सहमति को प्राथमिकता
हाल ही में हुई सुनवाई के बाद, हाई कोर्ट ने महिला को याचिकाकर्ता धीरज नायक के साथ रहने की इजाज़त दे दी और उसे धीरज को सौंप दिया गया। अदालत ने पुलिस को यह भी आदेश दिया कि वे दोनों को सुरक्षित तरीके से सवाई माधोपुर तक पहुँचाएँ।
इस फ़ैसले को महिलाओं की आज़ादी और व्यक्तिगत अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। यह निर्णय स्पष्ट संदेश देता है कि जब कोई महिला बालिग़ हो, तो उसकी अपनी मर्ज़ी सबसे ऊपर है, भले ही उस पर कोई भी सामाजिक या पारिवारिक दबाव हो।









