केंद्र सरकार OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) के आरक्षण नियमों में बड़ा बदलाव करने की योजना बना रही है. इसका मकसद यह है कि आरक्षण का लाभ उन्हीं तक पहुंचे, जिनके लिए यह वास्तव में बनाया गया था, और आर्थिक व सामाजिक रूप से मजबूत तबके को इससे बाहर किया जाए.

क्रीमी लेयर क्या है और क्यों अहम है?
‘क्रीमी लेयर’ शब्द का मतलब है OBC समुदाय के भीतर ऐसे लोग जो आर्थिक, सामाजिक और पेशेवर रूप से काफी मजबूत हैं. 1992 में सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ फैसले के बाद, मंडल आयोग की सिफारिशों के तहत इस अवधारणा को लागू किया गया.
- शुरू में 1993 में इसकी आय सीमा ₹1 लाख वार्षिक रखी गई थी।
- कई बार संशोधन के बाद 2017 में यह सीमा ₹8 लाख कर दी गई, जो अब भी लागू है।
- जो लोग इस सीमा से ऊपर हैं या उच्च सरकारी/अर्द्ध-सरकारी पदों पर हैं, उन्हें OBC आरक्षण का लाभ नहीं मिलता।
सरकार का नया कदम
सरकार अब क्रीमी लेयर के मानदंड को और सख्त करना चाहती है. नए प्रस्ताव के तहत, सिर्फ सरकारी नौकरियों ही नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय, निजी क्षेत्र, राज्य सरकारों के स्वायत्त निकाय, और सार्वजनिक उपक्रम के उच्च वेतन व पदों पर बैठे लोग भी इसके दायरे में आ सकते हैं. इसका मतलब है कि ऐसे लोगों के बच्चों को OBC आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा.
किन पदों पर पड़ेगा असर?
- विश्वविद्यालयों के शिक्षक: सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, प्रोफेसर जिनका वेतन लेवल-10 या उससे अधिक है.
- निजी क्षेत्र: जिनका वेतन और पद सरकारी लेवल-10 के बराबर है।
- केंद्रीय/राज्य स्वायत्त निकाय और वैधानिक संगठन: उच्च वेतनमान वाले पद।
- राज्य के सार्वजनिक उपक्रम: जिनका पद केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों में तय मानकों के बराबर है।
- अन्य सरकारी सहायता प्राप्त संस्थान: बोर्ड के उच्च अधिकारी और प्रबंधक वर्ग।
क्यों जरूरी समझा जा रहा है यह बदलाव?
- आरक्षण का उद्देश्य वंचित तबके को अवसर देना है, लेकिन मौजूदा नियमों में संपन्न वर्ग भी इसका लाभ ले लेता है।
- Equivalence के अभाव में, जाति प्रमाण पत्र जारी करने में मुश्किल आती है।
- 2017 में कुछ केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के लिए समतुल्यता तय हुई थी, लेकिन विश्वविद्यालयों, राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र के लिए अब तक स्पष्ट मानक नहीं बने हैं।
आगे का रास्ता
यह प्रस्ताव कई मंत्रालयों सामाजिक न्याय मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, कार्मिक मंत्रालय, विधि मंत्रालय, श्रम मंत्रालय, सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय, नीति आयोग, और NCBC की आपसी चर्चा के बाद तैयार हुआ है.
अगर इसे मंजूरी मिलती है, तो OBC आरक्षण पाने वालों की लिस्ट छोटी हो सकती है और असली लाभार्थियों को ज्यादा अवसर मिल सकते हैं.