भारत में अब यह तय हो गया है कि असली ‘चाय’ किसे कहा जाएगा। देश की खाद्य सुरक्षा संस्था ने हाल ही में सख्त दिशा‑निर्देश जारी किए हैं जिनके बाद अब बाजार में बिकने वाले कई पेयों की पहचान बदल जाएगी। सबसे बड़ा असर उन ब्रांड्स पर होगा जो अपने हर्बल, डिटॉक्स या फ्लावर‑बेस्ड ड्रिंक्स को “टी” नाम से बेचते हैं।

केवल एक पौधे से बनती है असली चाय
नए नियमन के अनुसार, अब “चाय” शब्द का इस्तेमाल सिर्फ उसी पेय के लिए किया जा सकेगा जो Camellia sinensis पौधे से तैयार किया गया हो। यानी ब्लैक टी, ग्रीन टी, कांगड़ा टी या इंस्टेंट टी जैसी परंपरागत चायें इसी श्रेणी में आएंगी।
Tulsi Tea, Chamomile Tea या अन्य हर्बल इन्फ्यूजन अब आधिकारिक रूप से “चाय” नहीं कहलाएंगे। यह सभी उत्पाद अब सिर्फ हर्बल ड्रिंक, इंफ्यूजन या फ्लावर‑बेस्ड बेवरेज के नाम से ही बेचे जा सकेंगे।
गलत नाम देना माना जाएगा मिसब्रांडिंग
नई व्यवस्था में पैकेटिंग और लेबलिंग को लेकर भी सख्ती बढ़ाई गई है। किसी भी पैक्ड पेय उत्पाद के सामने उसके सही नाम का उल्लेख करना अनिवार्य है। अगर कोई ब्रांड ऐसे ड्रिंक को “टी” बताकर बेचेगा, जो Camellia sinensis से नहीं बना है, तो इसे ‘मिसब्रांडिंग’ के दायरे में लाया जाएगा।
यह प्रावधान फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट, 2006 के तहत लागू है। ऐसे मामलों में निर्माताओं या विक्रेताओं पर जुर्माना और कानूनी कार्रवाई दोनों संभव हैं।
हर्बल और फ्लावर टी का क्या होगा?
नए नियम के बाद हर्बल टी, फ्लावर टी या रूइबोस जैसी विदेशी चायें पूरी तरह प्रतिबंधित नहीं होंगी। उपभोक्ता इन्हें पहले की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन कंपनियां अब इन्हें “चाय” नहीं कह पाएंगी।
ऐसे पेय “प्रोप्राइटरी फूड” या “नॉन‑स्पेसिफाइड फूड” कैटेगरी में रखे जाएंगे। यानी इन्हें अलग श्रेणी में बेचा जाएगा, जिससे ग्राहक को साफ पता चले कि यह असली चाय नहीं बल्कि जड़ी‑बूटी आधारित इंफ्यूजन है।
ई-कॉमर्स और स्टोर्स पर भी सख्ती
यह नियम सिर्फ ऑफलाइन मार्केट तक सीमित नहीं रहेगा। सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, फूड डिलीवरी ऐप्स और ई‑कॉमर्स वेबसाइटों को भी अपने उत्पादों की लिस्टिंग में संशोधन करना होगा।
अगर किसी ब्रांड ने नियमों की अनदेखी की तो उस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के फूड सेफ्टी अधिकारियों को निगरानी बढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं ताकि इस आदेश को सही तरीके से लागू किया जा सके।
उपभोक्ताओं के लिए क्या मायने हैं
यह बदलाव उपभोक्ता जागरूकता की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। अक्सर लोग “हर्बल टी” या “डिटॉक्स टी” को चाय समझकर खरीद लेते हैं, जबकि वे वास्तव में अलग श्रेणी के पेय होते हैं।
अब नया नियम खरीदारों को भ्रम से बचाएगा और उन्हें पता चलेगा कि उनके कप में जो पेय है, वह असली चाय की पत्तियों से बना है या नहीं। इससे बाजार में पारदर्शिता बढ़ेगी और ब्रांड्स को भी अपने प्रॉडक्ट्स की असल पहचान साफ करनी पड़ेगी।









