
राजधानी दिल्ली के स्कूलों में फीस को लेकर हो रही मनमानी को रोकने के लिए दिल्ली स्कूल शिक्षा (फीस निर्धारण और विनियमन में पारदर्शिता) अधिनियम, 2005 लागू कर दिया गया है। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने बताया की उपराजयपाल विनय कुमार सक्सेना ने सोमवार को इसपर अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। जिसके बाद सरकार ने इसे अधिसूचित कर दिया है।
मुख्यमंत्री का कहना है की इससे अब स्कूलों के फीस निर्धारण में पर्दार्शिता बढ़ेगी और शिक्षा के व्यवसायीकरण पर रोक लग सकेगी। इस विधेयक में अभिभावकों की संवेदनाओं को प्राथमिकता दी गई है। पिछले कई सालों से अभिभावक निजी स्कूलों की शुल्क वृद्धि जैसी मनमानी से परेशान थे, ऐसे में यह विधेयक लागू होने से स्कूलों की मनमानी पर रोक लग जाएगी, जो लाखों अभिभावकों के लिए एक ऐतिहासिक जीत से कम नहीं है।
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नहीं वसूली जाएगी मनमानी फीस
बता दें, इस विधेयक के लागू होने के बाद अब निजी स्कूलों में फीस बढ़ाने से पहले स्कूलों को औपचारिक अनुमति लेनी होगी। वहीं जो भी स्कूल फीस में बढ़ोतरी करेगा वह फीस का पूरा ब्रेअकप निकाय से साझा करेगा। यदि कोई स्कूल सरकार के इन नियमों का पालन नहीं करते तो उनके लिए सजा और जुर्माने का भी प्रावधान रखा गया है, कुछ स्थितियों में तो मान्यता भी रद्द की जा सकती है।
इसके अलावा यह विधेयक फीस को बढ़ने से रोकने के लिए बहु-स्तरीय शिकायत निवारण सुविधा भी देगा, इससे पेरेंट्स अपनी शिकायत दर्ज करा सकेंगे। वहीं छात्रों पर फीस के कारण कोई दंडात्मक करवाई नहीं होगी। अभिभावकों पर आर्थिक बोझ न पड़े इसके लिए एक बार स्वीकृति की गई फीस अगले तीन साल तक नहीं बढ़ेगी।
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शिक्षा विधेयक की खासियत
दिल्ली में शिक्षा विधेयक लागू होने से अब स्कूलों की तय फीस से अधिक वसूली नहीं की जा सकेगी। हर स्कूल में फीस सीमित होगी, इसमें प्रबंधन, महिलाएं, अभिभावक और वंचित वर्ग शामिल होंगे। फीस से जुडी शिकायतें और विवाद जिलें में शिकायत निवारण समिति और वरिष्ठ शिक्षा अधिकारीयों की अध्यक्षता में सुलझाई जाएगी। उच्चस्तरीय जिला स्तर के फैसलों पर अपील की जांच करेगी, जिससे को पक्षपात न हो।
इसके अलावा स्वीकृत फीस का ब्यौरा नोटिस बोर्ड, वेबसाइट और हिंदी, अंग्रेजी व स्कूल की भाषा में खुले रूप में प्रदर्शित होगा। साथ ही नियमों का उल्लंघन करने वाले स्कूलों पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
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