कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसने भारत की विदेश नीति और इतिहास को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। 31 अक्टूबर को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि और सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती के अवसर पर मीडिया को संबोधित करते हुए, दिग्विजय सिंह ने दावा किया कि इंदिरा गांधी ने भूटान को भारत का अंग बनाया था। उनके इस बयान ने राजनीतिक और ऐतिहासिक गलियारों में हलचल मचा दी है, क्योंकि यह भारत और भूटान के बीच स्थापित संप्रभु संबंधों (sovereign relations) की सामान्य समझ से बिल्कुल अलग है।

क्या कहा दिग्विजय सिंह ने?
इंदिरा गांधी के साहसिक फैसलों को याद करते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा, “इंदिरा जी ने देश का जो भौगोलिक नक्शा था, उसमें भी परिवर्तन कर दिया। जब देश आजाद हुआ तो भूटान हमारा देश का अंग नहीं था। उसको उसमें शामिल किया गया।” इसके साथ ही उन्होंने 1971 के युद्ध का जिक्र करते हुए कहा कि इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए और बांग्लादेश का निर्माण कराया। दिग्विजय सिंह का यह बयान इंदिरा गांधी की मजबूत और निर्णायक नेता की छवि को रेखांकित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
दावे की ऐतिहासिक पड़ताल: क्या है सच्चाई?
हालांकि दिग्विजय सिंह ने यह बयान इंदिरा गांधी की प्रशंसा में दिया, लेकिन ऐतिहासिक तथ्य उनके दावे का समर्थन नहीं करते हैं। भारत और भूटान के बीच संबंध हमेशा से ही अद्वितीय और विशेष रहे हैं, लेकिन भूटान कभी भी भारत का अंग नहीं रहा है। आइए, ऐतिहासिक तथ्यों पर एक नज़र डालते हैं:
- 1949 की मैत्री संधि: 1947 में भारत की आजादी के बाद, भारत और भूटान ने 8 अगस्त, 1949 को मैत्री और सहयोग संधि (Treaty of Friendship and Cooperation) पर हस्ताक्षर किए । इस संधि के तहत, भारत ने भूटान की संप्रभुता और स्वतंत्रता को मान्यता दी। संधि के अनुच्छेद 2 के अनुसार, भूटान अपनी विदेश नीति के संचालन में भारत से सलाह लेने पर सहमत हुआ, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि भूटान भारत का हिस्सा बन गया था। यह एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में भूटान की स्थिति को मजबूत करने वाला कदम था।
- नेहरू की भूमिका: भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारत-भूटान संबंधों की नींव रखी। उन्होंने भूटान की स्वतंत्रता का सम्मान किया और यह सुनिश्चित किया कि भारत एक बड़े भाई की भूमिका निभाए, न कि एक अधिपति की।
- संयुक्त राष्ट्र में सदस्यता: इंदिरा गांधी के कार्यकाल में ही भारत ने भूटान को संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की सदस्यता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1971 में भूटान संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना, जिसने एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में उसकी अंतरराष्ट्रीय पहचान को और मजबूत किया । यह कदम भूटान के भारत में विलय के दावे के ठीक विपरीत है।
- 2007 की संशोधित संधि: 2007 में, भारत और भूटान ने 1949 की संधि को संशोधित किया। इस नई संधि ने भूटान को अपनी विदेश नीति और रक्षा मामलों में और भी अधिक स्वायत्तता प्रदान की, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि भारत भूटान की संप्रभुता का पूरा सम्मान करता है। 
राजनीतिक मायने और संभावित विवाद
दिग्विजय सिंह का यह बयान एक बड़े राजनीतिक विवाद को जन्म दे सकता है। इसे ऐतिहासिक तथ्यों की गलत व्याख्या के रूप में देखा जा रहा है। बीजेपी और अन्य राजनीतिक दल इस बयान को लेकर कांग्रेस पर निशाना साध सकते हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत ‘पड़ोसी पहले’ (Neighbourhood First) की नीति पर जोर दे रहा है और भूटान के साथ अपने विशेष संबंधों को और मजबूत करने का प्रयास कर रहा है। ऐसे में, इस तरह का बयान दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रूप से असहज स्थिति पैदा कर सकता है।
इंदिरा गांधी की विरासत और बयान का संदर्भ
यह संभव है कि दिग्विजय सिंह का आशय भूटान को भारत के प्रभाव क्षेत्र में लाने और उसके रणनीतिक हितों को भारत के साथ जोड़ने से रहा हो। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में, भारत ने भूटान को चीन के प्रभाव से दूर रखने और उसे अपने सबसे करीबी सहयोगियों में से एक बनाने में सफलता पाई थी। भारतीय सेना आज भी भूटान की सीमाओं की सुरक्षा में सहयोग करती है और भारत भूटान का सबसे बड़ा विकास साझेदार है । शायद दिग्विजय सिंह इसी विशेष संबंध को “शामिल करने” के रूप में संदर्भित कर रहे थे, लेकिन उनके शब्दों का शाब्दिक अर्थ एक ऐतिहासिक और कूटनीतिक रूप से गलत तस्वीर पेश करता है।
निष्कर्ष में, दिग्विजय सिंह का यह दावा कि इंदिरा गांधी ने भूटान को भारत में शामिल किया, ऐतिहासिक रूप से सही नहीं है। भारत और भूटान दो अलग-अलग संप्रभु राष्ट्र हैं जिनके बीच गहरे मैत्रीपूर्ण और रणनीतिक संबंध हैं। भारत ने हमेशा भूटान की स्वतंत्रता का सम्मान किया है और उसकी प्रगति में एक सहयोगी की भूमिका निभाई है।
 
					







