राजधानी में आजकल एक नई बहस छिड़ी हुई है, और यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। चर्चा इस बात पर हो रही है कि हमारी प्यारी ‘दिल्ली’ का नाम आधिकारिक तौर पर बदलकर ‘दिल्लि’ कर दिया जाए। अब आप सोच रहे होंगे, “यार, इसमें क्या बड़ी बात है? बस एक स्पेलिंग ही तो बदल रही है।” लेकिन यकीन मानिए, यह मामला सिर्फ एक स्पेलिंग से कहीं ज़्यादा गहरा है। शहरी नीति और सांस्कृतिक बदलावों पर एक दशक से ज़्यादा समय से नज़र रखने वाले व्यक्ति के तौर पर मैं आपको बता सकता हूँ कि यह बहस हमारी पहचान, हमारे इतिहास और हमारे भविष्य की जड़ों तक जाती है।

यह कोई पहली बार नहीं है कि ऐसा विचार सामने आया है, लेकिन इस बार इसे काफी गंभीरता से लिया जा रहा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल ने दिल्ली की मुख्यमंत्री को एक औपचारिक पत्र लिखकर इस बदलाव की मांग की है। उनका तर्क है कि ‘दिल्लि’ शहर का असली, ऐतिहासिक और भावनात्मक नाम है, जबकि ‘दिल्ली’ (Delhi) महज़ ब्रिटिश औपनिवेशिक काल की एक निशानी है। तो क्या हमें अपनी सांस्कृतिक जड़ों को अपनाते हुए आधिकारिक तौर पर ‘दिल्लि’, यानी ‘दिलवालों की दिल्लि’ बन जाना चाहिए? या फिर ‘दिल्ली’ अब एक वैश्विक ब्रांड बन चुका है जिसके साथ हमें छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए? चलो, इस पूरे मुद्दे को तोड़कर समझते हैं, दोनों पक्षों के तर्कों को जानते हैं और यह पता लगाते हैं कि आखिर इस सब का मतलब क्या है।
| प्रस्ताव क्या है? | राष्ट्रीय राजधानी का आधिकारिक अंग्रेजी नाम ‘Delhi’ से बदलकर ‘Dilli’ करना। |
| किसने प्रस्तावित किया? | पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता, विजय गोयल, ने दिल्ली की मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर। |
| मुख्य तर्क | ‘दिल्लि’ शहर की सच्ची सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान को दर्शाता है, जबकि ‘दिल्ली’ एक औपनिवेशिक नाम है। इस बदलाव से नागरिकों का भावनात्मक जुड़ाव मजबूत होगा। |
| ऐतिहासिक आधार | माना जाता है कि यह नाम संस्कृत के शब्द ‘धिल्लिका’ से निकला है। सदियों से ऐतिहासिक ग्रंथों और यात्रियों ने इसे ‘दिल्लि’ ही कहा है। |
| राष्ट्रीय उदाहरण | भारत के कई शहरों ने अपने स्थानीय नाम वापस अपनाए हैं, जैसे बॉम्बे से मुंबई, कलकत्ता से कोलकाता, और मद्रास से चेन्नई। |
| संभावित चुनौतियाँ | महत्वपूर्ण प्रशासनिक, लॉजिस्टिक और वित्तीय लागत। ‘दिल्ली’ की वैश्विक ब्रांड पहचान पर भी असर पड़ सकता है। |
| आधिकारिक प्राधिकरण | किसी भी नाम परिवर्तन के लिए राज्य सरकार के एक प्रस्ताव और केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) की अंतिम मंजूरी की आवश्यकता होती है। |
नाम में क्या रखा है? ‘दिल्ली’ बनाम ‘दिल्लि’ बहस का असली मर्म
मूल रूप से, यह बहस सिर्फ एक नाम से कहीं ज़्यादा है। यह हमारी औपनिवेशिक-पूर्व पहचान को फिर से अपनाने और आधुनिक समय की निरंतरता को बनाए रखने के बीच एक क्लासिक खींचतान है।
इस बदलाव के समर्थकों के लिए, नाम को ‘दिल्लि’ करना हमारे औपनिवेशिक अतीत के आखिरी निशानों को मिटाने जैसा है। उनका तर्क है कि नाम मायने रखते हैं। वे हमारी पहचान बनाते हैं और हमें हमारी विरासत से जोड़ते हैं। जब हम ‘दिल्लि’ कहते हैं, तो यह अपनेपन का एहसास कराता है, शहर की शायरी, भोजन और इतिहास की समृद्ध विरासत से एक जुड़ाव महसूस होता है। उनका मानना है कि ‘दिल्ली’ नाम ठंडा और दूर का लगता है एक ऐसा नाम जो हमें बाहरियों ने दिया था।
दूसरी ओर, विरोधी कहते हैं कि यह उस चीज़ को ठीक करने जैसा है जो टूटी ही नहीं है। ‘दिल्ली’ अब एक शक्तिशाली वैश्विक ब्रांड है। इसे दुनिया भर में भारत की राजधानी, राजनीति, व्यापार और संस्कृति के केंद्र के रूप में पहचाना जाता है। वे कहते हैं कि इसे अब बदलने से अनावश्यक भ्रम पैदा होगा और इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। वे एक सरल सवाल पूछते हैं: प्रदूषण, यातायात और पानी की कमी जैसी गंभीर समस्याओं के बीच, क्या नाम बदलना वाकई हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है?
नाम के पीछे का इतिहास – ‘धिल्लिका’ से ‘दिल्लि’ तक का सफर
‘दिल्लि’ के तर्क को समझने के लिए, हमें समय में थोड़ा पीछे जाना होगा। शहर के नाम का इतिहास बहुत दिलचस्प है।
- ‘इंद्रप्रस्थ’ का भी दावा: कुछ समूह, जैसे विश्व हिंदू परिषद, दिल्ली का नाम बदलकर महाभारत काल के ‘इंद्रप्रस्थ’ रखने की मांग कर रहे हैं, ताकि शहर की प्राचीन पहचान को फिर से स्थापित किया जा सके।
- ‘धिल्लिका’ से उत्पत्ति: हालांकि, ज़्यादातर इतिहासकार मानते हैं कि नाम की उत्पत्ति 8वीं शताब्दी में तोमर वंश द्वारा स्थापित शहर ‘धिल्लिका’ से हुई है। इस क्षेत्र में मिले 1328 के एक शिलालेख में इस क्षेत्र को ‘धिल्लिका’ कहा गया है।
सदियों से, जैसे-जैसे अलग-अलग शासक और साम्राज्य आए और गए, नाम विकसित होता गया। दिल्ली सल्तनत और मुगल काल के दौरान, ऐतिहासिक ग्रंथों और दरबारी इतिहासकारों ने लगभग हमेशा शहर को ‘दिल्लि’ या कभी-कभी ‘देहली’ ही कहा है। 13वीं शताब्दी में रहने वाले प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो ने अपनी रचनाओं में ‘दिल्लि’ का इस्तेमाल किया। आज भी, हिंदी, उर्दू और पंजाबी में शहर को प्यार से ‘दिल्लि’ ही कहा जाता है। ‘दिल्ली’ शब्द केवल ब्रिटिश शासन के दौरान मानकीकृत हुआ, क्योंकि उन्होंने भारतीय नामों को अपने उच्चारण और लिखने में आसान बनाने के लिए अंग्रेजीकरण कर दिया।
नाम कैसे बदला जाता है? आधिकारिक ‘जुगाड़’
भारत में किसी शहर का नाम बदलना एक औपचारिक, कई-चरणीय प्रक्रिया है जो गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा शासित होती है। यह कुछ ऐसा नहीं है जो रातों-रात किया जा सके। यहाँ एक सरल अवलोकन है:
- राज्य सरकार का प्रस्ताव: प्रक्रिया राज्य सरकार से शुरू होती है। दिल्ली विधानसभा को नाम बदलने के पक्ष में एक प्रस्ताव पारित करना होगा।
- केंद्र को प्रस्ताव: यह प्रस्ताव फिर एक औपचारिक प्रस्ताव के रूप में केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजा जाता है।
- केंद्रीय एजेंसियों से अनापत्ति: MHA फिर कई केंद्रीय एजेंसियों से ‘अनापत्ति प्रमाण पत्र’ (NOC) मांगता है, जिसमें डाक विभाग, भारतीय सर्वेक्षण विभाग और रेल मंत्रालय शामिल हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि समान लगने वाले नाम का कोई दूसरा शहर या कस्बा तो नहीं है, जिससे भ्रम पैदा हो सकता है।
- अंतिम मंजूरी: सभी NOC प्राप्त होने के बाद, MHA नाम परिवर्तन के लिए अपनी अंतिम मंजूरी देता है।
- आधिकारिक अधिसूचना: इसके बाद राज्य सरकार एक आधिकारिक अधिसूचना जारी करती है, और नाम परिवर्तन प्रभावी हो जाता है।








