
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि सरकारी कागजों (म्यूटेशन) में नाम दर्ज होने मात्र से कोई व्यक्ति संपत्ति का असली मालिक नहीं बन जाता और न ही इससे दूसरे कानूनी वारिसों का हक खत्म होता है। कोर्ट ने कहा कि जमीन के शहरी क्षेत्र में आने के बाद उस पर उत्तराधिकार के कौन से नियम लागू होंगे, यह पूरी तरह से जांच और सुनवाई का विषय है। इस आधार पर कोर्ट ने मृतक बेटी के वारिसों द्वारा दायर मुकदमे को फिर से शुरू करने का आदेश दिया है, ताकि उन्हें इंसाफ मिल सके।
पैतृक जमीन के बंटवारे और म्यूटेशन को लेकर विवाद
यह मामला इंदु रानी के उत्तराधिकारियों द्वारा दायर एक अपील का है, जिसमें दिल्ली के गांव इरादत नगर की 41 बीघा से अधिक पैतृक भूमि पर मालिकाना हक का विवाद है। वादी का कहना है कि उनके पिता, राम गोपाल, की 1993 में बिना वसीयत बनाए मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद कानूनन उस संपत्ति में माँ, भाइयों और उनका बराबर का हिस्सा था। लेकिन उनके भाइयों ने बिना किसी को बताए चुपके से जमीन को अपने नाम करवा लिया और बाद में उसे दूसरों को बेच दिया, जिसे अब कोर्ट में चुनौती दी गई है।
शहरी भूमि और संपत्ति उत्तराधिकार पर अदालती मामला
इस कानूनी विवाद में वादी (केस करने वाले पक्ष) का कहना है कि साल 2006 में सरकारी अधिसूचना के बाद विवादित जमीन ‘शहरी’ हो गई थी, इसलिए अब इस पर पुराने दिल्ली लैंड रिफॉर्म (DLR) एक्ट के नियम लागू नहीं होते। उन्होंने 2020 में केस दायर कर पुराने सेल डीड को रद्द करने और अपना हिस्सा मांगा।
दूसरी ओर, विपक्षी पक्ष ने तर्क दिया कि पुराने कानून के हिसाब से महिलाओं को विरासत में अधिकार नहीं मिलते थे और 1993 में ही संपत्ति का मालिकाना हक पुरुषों के नाम तय हो चुका था। शुरुआत में सिंगल जज ने विपक्षी पक्ष की दलील मानकर इस केस को खारिज कर दिया था।
जमीन और बेटियों के उत्तराधिकार पर कानूनी बहस
इस मामले में मुख्य विवाद इस बात पर है कि पैतृक जमीन पर बेटी का हक होगा या नहीं। अपील करने वाले पक्ष का कहना है कि साल 2006 में जमीन के शहरी क्षेत्र में आने के बाद पुराने कानून (DLR Act) की पाबंदियाँ खत्म हो गई हैं और अब हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत बेटियों को भी जन्म से बराबर का हक मिलना चाहिए।
वहीं, दूसरे पक्ष का तर्क है कि उत्तराधिकार का मामला साल 1993 का है, जब पुराने नियमों के अनुसार बेटियों को जमीन के हक से बाहर रखा गया था। उनका मानना है कि 2005 में हुए कानूनी बदलावों का असर उन अधिकारों पर नहीं पड़ना चाहिए जो बेटों को पहले ही मिल चुके हैं।
जमीन और उत्तराधिकार पर हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी संपत्ति का उत्तराधिकार (Warishana Haq) कभी भी रुकता नहीं है और सरकारी रिकॉर्ड या म्यूटेशन में नाम दर्ज होने मात्र से कोई व्यक्ति मालिक नहीं बन जाता और न ही दूसरे वारिसों का हक खत्म होता है।
कोर्ट ने यह भी महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि यदि कोई ग्रामीण जमीन शहरी (Urbanized) घोषित हो जाती है, तो उस पर पुराने दिल्ली लैंड रिफॉर्म (DLR) एक्ट के नियम लागू होना संदिग्ध है। कोर्ट के अनुसार, केवल तकनीकी आधार पर या परिवार की जानकारी कम होने की वजह से किसी के कानूनी दावे को खारिज नहीं किया जा सकता, बल्कि मामले की गहराई से जांच होनी चाहिए।
हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए 1 दिसंबर 2022 के पुराने आदेश को रद्द कर दिया है और अब बंद हो चुके मुकदमे को फिर से शुरू (बहाल) करने का फैसला सुनाया है। अदालत का मानना है कि इस केस में ठोस आधार और कारण मौजूद हैं, जिनका फैसला बिना गवाहों और सबूतों की जांच किए नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही, कोर्ट ने दोनों पक्षों को 13 जनवरी 2026 को संबंधित बेंच के सामने पेश होने का निर्देश दिया है ताकि कानूनी कार्यवाही को आगे बढ़ाया जा सके।









