
गांव की गरीबी से निकलकर सफलता की नई मिसाल कायम करने वाले मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के रमेश यादव आज पूरे इलाके के युवाओं के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। जो कभी तंग हालात में जुग्गी-झोपड़ी में रहते थे, वही आज अपनी मेहनत और समझदारी से सालाना ₹50 लाख से अधिक का टर्नओवर हासिल कर रहे हैं।
भैंस बेचकर रखी बिजनेस की नींव
रमेश यादव की कहानी की शुरुआत संघर्ष से होती है। उनका सपना था कुछ अपना करने का, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती थी – पूंजी। उन्होंने हार नहीं मानी। घर की एकमात्र संपत्ति, भैंस को बेचकर ₹35,000 जुटाए और इसे अपनी पहली पूंजी बना लिया। इसी पैसे से उन्होंने पर्ल फार्मिंग यानी मोती की खेती की शुरुआत की।
ट्रेनिंग से आई तकनीकी समझ
व्यवसाय की शुरुआत करने से पहले रमेश ने मोती पालन की ट्रेनिंग ली थी। उन्होंने सीखा कि सही पानी का तापमान, ऑक्सीजन स्तर और शेल प्रबंधन किस तरह मोती की क्वालिटी को प्रभावित करता है। उन्होंने प्रशिक्षण में मिली जानकारी को जमीन पर उतारा, और धीरे-धीरे उनके तालाब में उगने वाले मोती बाजार में पहचान पाने लगे।
ऑनलाइन मार्केट से जोड़ा बिजनेस
जब मोती तैयार हो गए, तब सामने सबसे बड़ी चुनौती आई बेचना कैसे? गांव के सीमित दायरे से बाहर निकलकर रमेश ने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का सहारा लिया। उन्होंने ऑनलाइन मार्केटप्लेस और ज्वैलरी दुकानदारों से संपर्क किया। यह कदम उनके बिजनेस का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। अब वे सिर्फ लोकल नहीं, बल्कि आउटस्टेशन ऑर्डर भी संभालते हैं।
बढ़ता मुनाफा और रोजगार के अवसर
कम लागत से शुरू हुआ यह व्यवसाय आज लाखों का बन गया है। रमेश आज न केवल खुद के लिए, बल्कि आसपास के युवाओं के लिए भी रोजगार का माध्यम बन चुके हैं। वे पर्ल फार्मिंग की ट्रेनिंग देते हैं ताकि अन्य लोग भी यही तकनीक सीखकर आत्मनिर्भर बन सकें। उन्होंने साबित किया कि यदि किसी के पास लगन और सीखने की चाह हो, तो सीमित संसाधन भी बड़ी सफलता की राह खोल सकते हैं।
युवाओं के लिए प्रेरणादायक संदेश
रमेश यादव का मानना है कि बिजनेस शुरू करने के लिए हमेशा बड़े फंड की जरूरत नहीं होती। सही योजना, मेहनत और निरंतरता से छोटी शुरुआत भी बड़ा बदलाव ला सकती है। झोपड़ी से निकलकर लाखों का बिजनेस कायम करने की उनकी कहानी इस बात की जिंदा मिसाल है।








