
छतरपुर के निवासी देवी प्रसाद शुक्ला ने पहले टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक सामान ठीक किए, फिर नोएडा में दो साल तक गारमेंट्स फैक्ट्री में कपड़ा बनाने का काम सीखा। वापस अपने घर आकर, उन्होंने 20 लाख रुपये की लागत से खुद का कपड़ा व्यवसाय शुरू किया। अपनी कड़ी मेहनत और लगन से उन्होंने न केवल यह बिज़नेस सफल बनाया, बल्कि 10 अन्य लोगों को रोज़गार भी प्रदान किया, जो उनकी बड़ी सफलता की कहानी है।
नौकरी छोड़कर गाँव में शुरू किया गारमेंट्स बिज़नेस
पोस्ट ग्रेजुएट देवी प्रसाद ने इलेक्ट्रॉनिक और टीवी रिपेयरिंग का काम करते हुए कई साल शहर में बिताए, यहाँ तक कि उन्होंने ग्रेटर नोएडा की गारमेंट्स फैक्ट्री में भी ढाई साल काम किया। लेकिन लॉकडाउन के दौरान जब वह अपने गाँव लौटे, तो उन्होंने अपनी जन्मभूमि में ही कुछ करने का फैसला किया। इसी विचार के साथ, उन्होंने लगभग तीन साल पहले अपने छोटे से गाँव में कपड़े बनाने का व्यवसाय (गारमेंट्स बिज़नेस) शुरू किया, ताकि वे अपने गाँव में रहकर ही आजीविका कमा सकें।
खुद का बिज़नेस शुरू करने की जिद
देवी प्रसाद बताते हैं कि उन्हें शुरू से ही किसी की नौकरी करना पसंद नहीं था। पहले उन्होंने टीवी मैकेनिक की दुकान खोली, लेकिन बाद में मजबूरी में नोएडा जाकर एक गारमेंट्स फैक्ट्री के मेंटेनेंस विभाग में काम किया। इस दौरान उन्हें कर्मचारियों और आधिकारिक काम दोनों का कीमती अनुभव मिला। आज यही अनुभव उनके अपने बिज़नेस में काम आ रहा है। उनकी शुरू से ही यह पक्की जिद थी कि वह नौकरी करेंगे नहीं, बल्कि खुद लोगों को नौकरी देंगे।
कम लागत, बड़ी कमाई का बिज़नेस
देवी प्रसाद के अनुसार, उन्होंने यह बिज़नेस शुरुआत में सिर्फ ₹1 लाख से शुरू किया था। बाद में ₹7 लाख की मशीनें खरीदी गईं, जिससे रॉ मटेरियल की लागत मिलाकर कुल लागत ₹20 लाख (बीस लाख रुपए) तक पहुँच गई। इस व्यवसाय की सबसे बड़ी खासियत यह है कि कमाई की कोई सीमा नहीं है; आप जितना ज़्यादा माल बनाएंगे, उतना ही ज़्यादा कमाएंगे। उनके मुताबिक, अगर कोई ₹50 लाख तक का माल बना लेता है, तो वह उतनी ही कमाई भी कर सकता है।
8 से 10 लोगों को दिया रोज़गार
देवी प्रसाद ने गाँव में ही अपना खुद का गारमेंट ब्रांड स्थापित किया है, जहाँ लड़कियों के लिए कुर्ती और प्लाजो से लेकर बच्चों से लेकर ट्रिपल एक्सएल साइज़ तक के लोअर, टी-शर्ट आदि बनते हैं। वह अपने लोअर में डबल सिलाई और अच्छी क्वालिटी की इलास्टिक का इस्तेमाल करते हैं। वे अपने उत्पाद (जैसे एक पैकेट में 6 अलग-अलग रंग के लोअर) गाँव में ही बनाकर सीधे थोक व्यापारियों को सप्लाई करते हैं। इस पहल से न केवल देवी प्रसाद को फायदा हुआ है, बल्कि गाँव के 8 से 10 लोगों को भी रोज़गार मिला है।
रोजगार के नए अवसर पैदा
गांव में कपड़ा फैक्ट्री शुरू होने से स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं। जिन लोगों के पास सिलाई या अन्य संबंधित काम का हुनर था, लेकिन रोज़गार नहीं मिल रहा था, अब उन्हें अपनी योग्यता के अनुसार गांव में ही काम मिल गया है। इस पहल से स्थानीय कारीगरों को अब काम की तलाश में शहरों की ओर पलायन नहीं करना पड़ेगा।









