
सुप्रीम कोर्ट ने पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे से जुड़े एक मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ किया है कि बिना रजिस्ट्री वाला पारिवारिक समझौता भी बंटवारे को साबित करने के लिए पूरी तरह से मान्य होगा। हालांकि, यह समझौता संपत्ति का कानूनी मालिकाना हक़ स्थापित नहीं कर सकता, लेकिन इसे सबूत के तौर पर ज़रूर माना जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस संबंध में निचली अदालतों ने पहले कानून की गलत व्याख्या की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा निचली अदालतों का फैसला
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन.वी. अंजनिया की बेंच ने कर्नाटक हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के फैसलों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने पाया कि निचली अदालतों ने फैसला सुनाते समय अपीलकर्ता के पक्ष में मौजूद दो भाइयों के पंजीकृत त्याग-पत्रों और 1972 के पारिवारिक समझौते जैसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को नज़रअंदाज़ कर दिया था, जिसके कारण फैसला गलत हो गया था।
संपत्ति बँटवारे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि संपत्ति का पंजीकृत त्याग-पत्र (Registered Relinquishment Deed) अपने आप में मान्य होता है और इसे लागू करने के लिए किसी और शर्त की ज़रूरत नहीं होती। कोर्ट ने निचली अदालतों के उस फैसले को गलत माना, जिसमें संपत्ति को संयुक्त परिवार की मानकर सभी वारिसों में बराबर बाँटने का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पंजीकृत पारिवारिक समझौता (Registered Family Settlement) किसी के नाम पर स्वामित्व (Title) स्थापित नहीं कर सकता, लेकिन इसे सबूत (Evidence) के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
पारिवारिक समझौता क्या है ?
पारिवारिक समझौता (Family Settlement) परिवार के सदस्यों के बीच संपत्ति के बँटवारे या किसी विवाद को सुलझाने के लिए किया गया एक लिखित या मौखिक करार होता है। इसका मुख्य लक्ष्य परिवार में शांति बनाए रखना और भविष्य में कोर्ट-कचहरी के मुकदमों से बचना है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस तरह के समझौतों को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया है, क्योंकि यह परिवार की एकजुटता को बनाए रखने में मदद करता है।









