
भारत में 1 जुलाई 2024 को नए आपराधिक कानूनों के लागू होने के बाद अब एक और बड़ा कानूनी सुधार सामने आया है इंडियन रजिस्ट्रेशन बिल 2025। यह बिल 1908 के पुराने रजिस्ट्रेशन एक्ट की जगह लेने जा रहा है। इसका उद्देश्य देश में संपत्ति से जुड़े लेन-देन को अधिक पारदर्शी, सुरक्षित और डिजिटल बनाना है।
पुरानी व्यवस्था से बाहर निकलने की कोशिश
ब्रिटिश काल से चले आ रहे रजिस्ट्रेशन और भूमि कानून आज की डिजिटल और जटिल रियल एस्टेट व्यवस्था में कई बार काम के नहीं रहे। कई तकनीकी सीमाओं के कारण जमीन की खरीद-बिक्री में पारदर्शिता की कमी, नकली दस्तावेज़, और वर्षों तक चलने वाले मुकदमे आम हो गए हैं।
नया बिल इसी कमी को दूर करने का प्रयास है। इसका मकसद सिर्फ एक “रजिस्टर ऑफिस” चलाना नहीं, बल्कि जनता को ऐसे दस्तावेज़ीय सिस्टम से जोड़ना है जो सुरक्षित और भरोसेमंद हो।
डिजिटल इंडिया के अनुरूप कानून
इंडियन रजिस्ट्रेशन बिल 2025, Digital India की उस सोच से मेल खाता है जिसमें प्रत्येक सरकारी प्रक्रिया को ऑनलाइन किया जा सके। इसके तहत राज्यों में इंस्पेक्टर जनरल ऑफ रजिस्ट्रेशन (IGR) के तहत एक एकीकृत ढांचा प्रस्तावित है। इस ढांचे में रजिस्ट्रेशन ऑफिसों को आधुनिक तकनीक से लैस किया जाएगा—जैसे कंप्यूटर, स्कैनर, ऑनलाइन डॉक्यूमेंट सबमिशन और डिजिटल सिग्नेचर की सुविधा। इसका एक बड़ा कदम ब्लॉकचेन आधारित संपत्ति रजिस्ट्रेशन की दिशा में हो सकता है, जिससे डेटा चोरी या दस्तावेज़ खोने जैसी समस्याएं खत्म होंगी।
संपत्ति विवादों पर लगाम
देश में दीवानी मुकदमों का अधिकतर हिस्सा भूमि और संपत्ति विवादों से जुड़ा होता है। नया बिल इस पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस कदम बढ़ाता है। अब संपत्ति से जुड़ी हर ट्रांजैक्शन खरीद, बिक्री, या गिरवी रखने की प्रक्रिया को दर्ज करना अनिवार्य होगा। बैंक या वित्तीय संस्थान जब किसी संपत्ति को गिरवी के रूप में स्वीकार करेंगे, उन्हें उस डीड की सूचना स्थानीय रजिस्ट्रेशन अधिकारी को देनी होगी। इससे एक ही संपत्ति पर बार-बार लोन लेने जैसी धोखाधड़ी रुकेगी।
वसीयत और संपत्ति अधिकारों की पारदर्शिता
एक बड़ी समस्या यह रही है कि रजिस्टर्ड वसीयत को भी कोर्ट में हमेशा प्राथमिकता नहीं दी जाती। इससे एक संपत्ति पर कई वसीयतें सामने आ जाती हैं और सालों तक मुकदमे चलते रहते हैं। इसलिए प्रस्ताव है कि वसीयत का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य बनाया जाए। इससे वारिसों के बीच भ्रम खत्म होगा और संपत्ति का ट्रांसफर स्पष्ट रूप से दर्ज रहेगा।
सामाजिक न्याय के लिए प्रावधान
नया बिल सामाजिक दृष्टिकोण से भी संतुलित है। इसमें सुझाव है कि अनुसूचित जाति और जनजाति के भूमिहीन परिवारों को रजिस्ट्रेशन शुल्क और स्टांप ड्यूटी में छूट दी जा सकती है, लेकिन उन्हें रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया से छूट नहीं मिले। इस कदम से यह सुनिश्चित होगा कि जमीन वास्तव में उसी व्यक्ति के नाम पर हो जिसे सरकार ने लाभार्थी बनाया है।
रिकॉर्ड सुधार और जमीनी पारदर्शिता
देश में जमीन के रिकॉर्ड अब डिजिटल हो रहे हैं, लेकिन शहरी और ग्रामीण इलाकों के लिए अलग-अलग व्यवस्था का अभाव है। प्रस्ताव है कि शहरी क्षेत्रों के लिए “रिकॉर्ड ऑफ राइट्स” को प्रॉपर्टी टैक्स रिकॉर्ड से जोड़ा जाए। साथ ही, संपत्ति मालिकों को आधार या पैन से जोड़ने की सिफारिश की गई है ताकि बेनामी लेन-देन पर रोक लगाई जा सके। आने वाले समय में ड्रोन सर्वे और जियो-रेफरेंस्ड नक्शों के ज़रिए भी रिकॉर्ड को और सटीक बनाने की योजना है।









