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Rajasthan HC Decision: विवाहित संतान को पिता की संपत्ति पर नहीं अधिकार! High Court का बड़ा फैसला

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि विवाहित संतान को पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता, खासकर तब जब वह संपत्ति पिता की स्व-अर्जित हो। कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए बेटे की अपील को खारिज कर दिया। जानें हाईकोर्ट ने और क्या कहा और इसके क्या मायने हैं।

By Pinki Negi

Rajasthan HC Decision: विवाहित संतान को पिता की संपत्ति पर नहीं अधिकार! High Court का बड़ा फैसला
Rajasthan HC Decision

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि कोई भी वयस्क और विवाहित संतान अपने पिता द्वारा स्वयं अर्जित की गई संपत्ति (Self-Acquired Property) में उनकी अनुमति के बिना रहने का कानूनी अधिकार नहीं रखती है। कोर्ट ने कहा कि यदि पिता अपनी दी गई अनुमति या स्नेह वापस ले लेता है, तो पुत्र या पुत्री को तुरंत संपत्ति खाली करनी होगी। जस्टिस सुदेश बंसल की एकलपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए, अनावश्यक मुकदमा दायर करने के लिए पुत्र पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।

अदालत का फैसला

कोर्ट ने एक मामले पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि पिता-पुत्र के बीच ऐसा मुकदमा उनके पवित्र रिश्ते पर एक कलंक है और समाज के लिए एक दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण है। यह मामला एक ऐसे मकान से जुड़ा था जिसे पिता ने अपनी कमाई से खरीदा था। पिता ने अपने बेटे और बहू को उस मकान के एक हिस्से में रहने की इज़ाज़त दी थी, लेकिन संबंध बिगड़ने पर उन्होंने उन्हें घर खाली करने को कहा। जब बेटे ने इंकार कर दिया, तो मजबूर होकर पिता को अपनी संपत्ति खाली करवाने के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा।

पिता की संपत्ति पर पुत्र का दावा खारिज

ट्रायल कोर्ट ने पिता के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसके बाद पुत्र ने हाई कोर्ट में अपील करते हुए दावा किया कि वह संयुक्त परिवार की संपत्ति में सह-अधिकार रखता है। हालांकि, कोर्ट ने दस्तावेज़ों की जाँच करने के बाद पाया कि पिता ने वह मकान अपने निजी पैसों से खरीदा था, न कि किसी संयुक्त परिवार के धन से। इसलिए, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पुत्र का उस मकान पर कब्ज़ा केवल पिता की मर्ज़ी (अनुमति) पर आधारित था और इसे कोई कानूनी अधिकार नहीं माना जा सकता, जिसके परिणामस्वरूप पुत्र का दावा खारिज कर दिया गया।

पिता की संपत्ति पर पुत्र का अधिकार

अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि पिता की संपत्ति पर वयस्क और विवाहित पुत्र का रहना उसका कानूनी अधिकार नहीं है। बचपन में तो पुत्र स्नेह और देखभाल के कारण रहता है, लेकिन बड़ा होने के बाद पिता अगर उसे रहने देते हैं, तो यह केवल सद्भावना या अनुग्रह माना जाता है, न कि कोई कानूनी अधिकार। अदालत ने यह भी कहा कि यदि पिता अपने पुत्र के व्यवहार से असंतुष्ट होकर उसे मकान खाली करने को कहते हैं, तो पुत्र का उस संपत्ति में रहना अवैध हो जाता है और उसे कोई कानूनी सुरक्षा नहीं मिलती है।

पिता को परेशान करने पर बेटे को देना होगा ₹1 लाख का जुर्माना

एक मामले में, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि पुत्र जानबूझकर पिता को परेशान करने की कोशिश करे, तो पिता द्वारा सीधे निषेधाज्ञा (Injunction) के लिए मुकदमा दायर करना बिल्कुल सही है, इसके लिए अलग से कब्ज़ा वापसी का मुकदमा ज़रूरी नहीं है।

अदालत ने पाया कि पुत्र द्वारा यह अपील केवल पिता को परेशान करने और अनुचित लाभ लेने का एक प्रयास थी, जो पारिवारिक रिश्तों की गरिमा को ठेस पहुँचाती है। अंत में, न्यायालय ने पुत्र की अपील को अस्वीकार कर दिया और भविष्य में ऐसे अनावश्यक विवादों को रोकने के लिए उसे एक लाख रुपये (₹1,00,000) का दंड भरने का आदेश दिया।

Author
Pinki Negi
GyanOK में पिंकी नेगी बतौर न्यूज एडिटर कार्यरत हैं। पत्रकारिता में उन्हें 7 वर्षों से भी ज़्यादा का अनुभव है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत साल 2018 में NVSHQ से की थी, जहाँ उन्होंने शुरुआत में एजुकेशन डेस्क संभाला। इस दौरान पत्रकारिता के क्षेत्र में नए-नए अनुभव लेने के बाद अमर उजाला में अपनी सेवाएं दी। बाद में, वे नेशनल ब्यूरो से जुड़ गईं और संसद से लेकर राजनीति और डिफेंस जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर रिपोर्टिंग की। पिंकी नेगी ने साल 2024 में GyanOK जॉइन किया और तब से GyanOK टीम का हिस्सा हैं।

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