
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले, महागठबंधन के बाद NDA ने भी अपना घोषणापत्र (Manifesto) जारी किया, जिसे ‘संकल्प पत्र’ नाम दिया गया है। इसमें महिलाओं, किसानों और गरीबों सहित कई वर्गों के लिए वादे किए गए हैं कि सत्ता में लौटने पर क्या किया जाएगा। जनता के मन में अक्सर यह सवाल होता है कि क्या ये चुनावी वादे पूरे करना कानूनी रूप से अनिवार्य होता है या इन्हें नज़रअंदाज़ किया जा सकता है। ऐसे कई मामले कोर्ट तक भी पहुँचे हैं, जहाँ दलों पर वादाखिलाफी का आरोप लगा। आइए, जानते हैं कि कानूनी तौर पर इन चुनावी वादों को लेकर क्या नियम और प्रावधान हैं।
घोषणापत्र क्या होता है ?
चुनाव लड़ने से पहले, हर राजनीतिक पार्टी जनता से कई तरह के वादे करती है। इन वादों को एक लिखित दस्तावेज़ के रूप में जनता तक पहुँचाया जाता है, जिसे चुनावी घोषणा पत्र (Election Manifesto) कहा जाता है। इस दस्तावेज़ में बताया जाता है कि यदि पार्टी चुनाव जीतती है, तो वह समाज के विभिन्न वर्गों के लिए क्या-क्या नई योजनाएँ, सुविधाएँ और लाभ लाएगी। यह घोषणा पत्र एक तरह से जनता के लिए यह जानने का माध्यम है कि कौन सी पार्टी उनके भविष्य के लिए क्या नया करने जा रही है।
घोषणापत्र में किए वादे पूरे न करने पर क्या होता है ?
चुनावी घोषणापत्र (Manifesto) में किए गए वादों को जीत के बाद पूरा करना कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है। हमारे देश में ऐसा कोई नियम या कानून नहीं है जिसके तहत वादे पूरे न करने पर किसी उम्मीदवार या राजनीतिक दल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सके। हालांकि, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951)
यह तय करता है कि पार्टियाँ क्या कर सकती हैं और क्या नहीं। लेकिन इसमें “वादाखिलाफी” को लेकर कोई स्पष्ट ज़िक्र नहीं है। हाँ, अगर कोई उम्मीदवार पैसे बाँटने या रिश्वत देने जैसे अवैध वादे करके सत्ता में आता है, तो उस पर कार्रवाई या सज़ा ज़रूर हो सकती है, क्योंकि उसकी जवाबदेही (Accountability) तय की जाती है।
चुनावी घोषणापत्र पर सुप्रीम कोर्ट की राय
चुनावी घोषणापत्रों में किए गए वादों को लेकर कुछ मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचे हैं। इन मामलों पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने माना है कि ये वादे केवल राजनीतिक प्रतिबद्धताएँ थे, जिनके आधार पर भ्रष्टाचार साबित नहीं किया जा सकता। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से इन घोषणापत्रों के लिए दिशा-निर्देश बनाने की बात कही है। वर्तमान में, चुनाव आयोग आचार संहिता (Model Code of Conduct) के नियमों के तहत उम्मीदवारों और पार्टियों के बयानों पर नज़र रखता है, लेकिन घोषणापत्रों के वादों को नियंत्रित करने के लिए कोई विशिष्ट नियम मौजूद नहीं है।








