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इंडिगो की तरह ठप हो जाएगी भारतीय रेलवे? लोको पायलट की ड्यूटी 6 घंटे तक सीमित करने की मांग

रेलवे कर्मचारी अब लोको पायलट (ड्राइवरों) की ड्यूटी का समय 6 घंटे तक सीमित करने की मांग कर रहे हैं। कर्मचारियों का कहना है कि पायलटों पर ज्यादा ड्यूटी का दबाव, इंडिगो एयरलाइंस की तरह रेलवे संचालन को भी ठप कर सकता है। जानिए यह मांग क्यों उठी है और इसका आपकी यात्रा पर क्या असर हो सकता है!

By Pinki Negi

इंडिगो की तरह ठप हो जाएगी भारतीय रेलवे? लोको पायलट की ड्यूटी 6 घंटे तक सीमित करने की मांग
लोको पायलट

देश में चल रहे इंडिगो फ्लाइट संकट (फ्लाइट कैंसिल और देरी) के बीच अब रेलवे में एक नई परेशानी खड़ी हो गई है। ट्रेन ड्राइवर (लोको पायलट) अपने काम के घंटे तय करने की मांग पर जोर दे रहे हैं। उनका कहना है कि पर्याप्त आराम न मिलने के कारण वे अत्यधिक थकान में ट्रेन चलाते हैं, जिससे हादसे का खतरा बढ़ जाता है। पायलटों का तर्क है कि जब एयरलाइन पायलटों के लिए सख्त नियम बनाए जा सकते हैं, तो रेलवे को भी वैज्ञानिक कार्य प्रणाली अपनानी चाहिए। अगर लोको पायलट प्रदर्शन पर उतर आते हैं, तो रेलवे का संचालन मुश्किल हो सकता है।

लोको पायलटों की माँग

रेलवे के लोको पायलटों (ट्रेन चालकों) ने सरकार से माँग की है कि उनकी ड्यूटी केवल 6 घंटे की जाए, हर ड्यूटी के बाद उन्हें 16 घंटे का फिक्स आराम मिले, और हफ्ते में एक निश्चित छुट्टी भी तय हो। उनका कहना है कि यह सुरक्षा के लिए बहुत ज़रूरी है।

अगर सरकार और पायलटों के बीच बातचीत सफल नहीं हुई और कर्मचारियों ने आंदोलन शुरू कर दिया, तो इसका सीधा असर ट्रेनों के संचालन पर पड़ सकता है। इससे ट्रेनें लेट हो सकती हैं, कैंसिल हो सकती हैं या उनका शेड्यूल बिगड़ सकता है। ठीक वैसे ही जैसे इंडिगो एयरलाइन में संकट के कारण हजारों उड़ानें रद्द हुई हैं। अगर यह स्थिति बिगड़ी, तो देश की सबसे बड़ी यात्री सेवा प्रणाली यानी रेलवे पर भी बहुत दबाव आ जाएगा, जिससे लाखों यात्री प्रभावित होंगे।

ड्यूटी के घंटे हों तय और सुरक्षित

ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (AILRSA) का कहना है कि उनकी मुख्य मांग है कि पायलटों की ड्यूटी इंसान के शरीर की क्षमता के हिसाब से तय की जाए। पायलटों को कई बार लगातार 10 से 12 घंटे तक काम करना पड़ता है। लगातार लंबी रात की ड्यूटी और आराम न मिलने से वे मानसिक और शारीरिक रूप से थक जाते हैं।

पायलटों का कहना है कि एक थका हुआ पायलट हजारों यात्रियों की जान खतरे में डाल सकता है। जैसे इंडिगो मामले में पायलट की थकान पर नियम बने, वैसे ही रेलवे पायलटों को भी वैज्ञानिक और सुरक्षित कार्य प्रणाली के तहत काम करने के नियम मिलने चाहिए, जिससे दोहरे मापदंड (Double Standards) खत्म हों।

निजी और सरकारी कर्मचारियों के लिए अलग नियम? रेलवे कर्मचारियों का गुस्सा

रेलवे कर्मचारियों के एक संगठन (AILRSA) ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा है कि जब सरकारी कर्मचारी अपनी स्थिति सुधारने के लिए आवाज़ उठाते हैं, तो उन पर तुरंत कार्रवाई होती है।

इसके उलट, बड़ी निजी कंपनियाँ (जैसे इंडिगो) जब सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करती हैं (जैसे पायलटों के आराम के समय की अनदेखी), तो सरकार उनके प्रति नरमी दिखाती है। कर्मचारियों का आरोप है कि FRMS (Fatigue Risk Management System), जो दुनिया भर में सफल है और विमानन क्षेत्र के लिए ज़रूरी है, उसे रेलवे में लागू करने में देरी क्यों हो रही है, जबकि रेलवे कर्मचारियों पर छोटे से विरोध पर भी कड़े कदम उठाए जाते हैं।

Author
Pinki Negi
GyanOK में पिंकी नेगी बतौर न्यूज एडिटर कार्यरत हैं। पत्रकारिता में उन्हें 7 वर्षों से भी ज़्यादा का अनुभव है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत साल 2018 में NVSHQ से की थी, जहाँ उन्होंने शुरुआत में एजुकेशन डेस्क संभाला। इस दौरान पत्रकारिता के क्षेत्र में नए-नए अनुभव लेने के बाद अमर उजाला में अपनी सेवाएं दी। बाद में, वे नेशनल ब्यूरो से जुड़ गईं और संसद से लेकर राजनीति और डिफेंस जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर रिपोर्टिंग की। पिंकी नेगी ने साल 2024 में GyanOK जॉइन किया और तब से GyanOK टीम का हिस्सा हैं।

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