
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि बुजुर्ग माता-पिता को अपने घर में शांति और सम्मान के साथ रहने का पूरा अधिकार है, जिसे पारिवारिक झगड़ों में भी छीना नहीं जा सकता। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को सही ठहराया, जिसमें बहू को उसके सास-ससुर के खुद कमाए हुए (स्व-अर्जित) घर से बाहर निकलने का निर्देश दिया गया था। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि बुजुर्गों की शांति परिवार के विवादों से अधिक महत्वपूर्ण है।
घरेलू हिंसा मामले में बहू का ‘कब्जे का हक’
एक हालिया फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा कानून (PWDV एक्ट) के तहत बहू को ससुराल में रहने का अधिकार मिलता है। हालांकि, कोर्ट ने जोर दिया कि यह अधिकार केवल ‘कब्जे का हक’ है, न कि घर पर मालिकाना हक। जजों की बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कानून ऐसा होना चाहिए जिससे बहू की सुरक्षा और परिवार की शांति दोनों बनी रहे, और अदालत ने हमेशा दोनों पक्षों के अधिकारों में संतुलन बनाने पर जोर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने बहू को दिया वैकल्पिक घर का प्रस्ताव
एक ही मकान में सीढ़ियों और रसोई साझा होने के कारण कोर्ट ने माना कि बहू का अलग रहना मुश्किल है। इसके समाधान के तौर पर, बुजुर्ग सास-ससुर ने बहू के लिए एक वैकल्पिक घर का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव में घर का ₹65,000 मासिक किराया, साथ ही मेंटेनेंस, बिजली-पानी का बिल और सिक्योरिटी डिपॉजिट का सारा खर्च खुद उठाने की बात कही गई।
दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला
एक कानूनी मामले में, कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बुजुर्गों के शांतिपूर्ण जीवन के अधिकार और बहू के गरिमापूर्ण सुरक्षा अधिकार के बीच संतुलन बनाना ज़रूरी है। कोर्ट ने घरेलू हिंसा कानून (PWDV Act) के तहत बहू को बेघर होने से बचाने के साथ-साथ यह सुनिश्चित किया कि बुजुर्गों को उनके अंतिम वर्ष शांति से बिताने को मिलें। इसलिए, कोर्ट ने बहू को आदेश दिया कि वह चार हफ्तों के भीतर पुराने घर के पास ही दो कमरों वाला फ्लैट ढूंढे, और इसके दो हफ्ते बाद विवादित घर को खाली कर दे।
 
					







