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क्या भविष्य में कोई और शहर बनेगा भारत की राजधानी? जानें

दिल्ली के बढ़ते संकट के बीच, भारत की नई राजधानी की बहस तेज। जानिए क्या हैं एक आदर्श राजधानी के मानदंड और कौन से शहर इस दौड़ में सबसे आगे हैं।

By GyanOK

भारत की राजधानी को नई दिल्ली से शिफ्ट करने की चर्चा अब केवल अकादमिक बहसों तक सीमित नहीं रही है। दिल्ली के बिगड़ते हालात, खासकर जानलेवा प्रदूषण, ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में ला दिया है । लेकिन क्या राजधानी बदलना इतना आसान है? और अगर हाँ, तो कौन सा शहर इस भारी ज़िम्मेदारी को उठाने के काबिल है? इस सवाल का जवाब देने के लिए, हमें पहले उन मानदंडों को समझना होगा जो एक आदर्श राजधानी के लिए ज़रूरी हैं।

क्या भविष्य में कोई और शहर बनेगा भारत की राजधानी? जानें
क्या भविष्य में कोई और शहर बनेगा भारत की राजधानी? जानें

एक आदर्श राजधानी के लिए क्या मानदंड है

किसी भी नए शहर को राजधानी बनाने से पहले विशेषज्ञ कई प्रमुख कारकों पर विचार करने की सलाह देते हैं :

  • शहर देश के मध्य में स्थित होना चाहिए ताकि सभी क्षेत्रों से उसकी पहुँच आसान हो।
  • एक नई राजधानी बसाने और भविष्य के विस्तार के लिए पर्याप्त सरकारी भूमि और प्रचुर जल संसाधन का होना अनिवार्य है।
  • शहर रेल, सड़क और हवाई मार्गों से देश के बाकी हिस्सों से बेहतरीन तरीके से जुड़ा होना चाहिए।
  • वह क्षेत्र भूकंप, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज़ से सुरक्षित होना चाहिए।
  • शहर को बिना कृषि भूमि को नष्ट किए या बड़ी आबादी को विस्थापित किए एक सुनियोजित तरीके से विकसित करने की गुंजाइश होनी चाहिए।

संभावित विकल्पों का आलोचनात्मक विश्लेषण

इन मानदंडों के आधार पर जब हम विभिन्न विकल्पों को देखते हैं, तो एक अधिक स्पष्ट और तार्किक तस्वीर उभरती है।

1. सुनियोजित मौजूदा शहर, एक व्यावहारिक विकल्प?

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि शून्य से एक नया शहर बनाने के बजाय, भारत के कुछ बेहतरीन नियोजित शहरों को राजधानी के रूप में विकसित किया जा सकता है।

  • चंडीगढ़ और गांधीनगर: ये दोनों शहर अपनी आधुनिक वास्तुकला, सेक्टर-आधारित योजना और हरे-भरे वातावरण के लिए प्रसिद्ध हैं । इन्हें भारत के सबसे सुनियोजित शहरों में गिना जाता है। हालाँकि, ये दोनों ही भौगोलिक रूप से केंद्र में स्थित नहीं हैं और इनकी विस्तार क्षमता भी सीमित है।
  • पुणे और हैदराबाद: ये शहर शिक्षा, आईटी और औद्योगिक विकास के बड़े केंद्र हैं । इनके पास मजबूत बुनियादी ढाँचा और आर्थिक शक्ति है। लेकिन ये शहर पहले से ही भीड़भाड़ और ट्रैफिक जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं, जो दिल्ली की ही तरह हैं।
  • चेन्नई: बेहतर वायु गुणवत्ता, सुनियोजित पड़ोस और समुद्र तटीय स्थान चेन्नई को एक दिलचस्प विकल्प बनाते हैं । इसकी रणनीतिक स्थिति इसे चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों की सीधी पहुँच से दूर रखती है, जो एक सुरक्षात्मक लाभ हो सकता है।
2. मध्य भारत में एक नया शहर: एक महत्वाकांक्षी विचार

एक अन्य विचार यह है कि दिल्ली की तरह गलतियों को दोहराने से बचने के लिए, मध्य भारत में पूरी तरह से एक नया “ग्रीनफील्ड” शहर बनाया जाए।

  • नागपुर-वर्धा क्षेत्र: नागपुर भारत के भौगोलिक केंद्र “जीरो माइल” पर स्थित है, जो इसे एक मजबूत तार्किक दावेदार बनाता है। कुछ सुझावों के अनुसार, नागपुर और वर्धा के बीच वेणा नदी के किनारे एक बिल्कुल नया प्रशासनिक शहर बनाया जा सकता है। इससे न केवल प्रशासन विकेंद्रीकृत होगा, बल्कि यह क्षेत्र के आर्थिक विकास को भी गति देगा।
  • अन्य केंद्रीय स्थान: मध्य प्रदेश में गुना के पास, उत्तर प्रदेश में झांसी के पास और राजस्थान में कोटा के पास के क्षेत्रों को भी उनकी समतल भूमि, कम जनसंख्या और पानी की उपलब्धता के कारण संभावित स्थानों के रूप में सुझाया गया है।

क्या एक से अधिक राजधानियाँ समाधान हो सकती हैं?

राजधानी को पूरी तरह से स्थानांतरित करने के बजाय, एक और मॉडल “वितरित राजधानी” (Distributed Capital) का है। भारत के कई राज्य पहले से ही इस मॉडल का पालन करते हैं, जैसे महाराष्ट्र (मुंबई और नागपुर) और हिमाचल प्रदेश (शिमला और धर्मशाला)।

इस मॉडल के तहत, दिल्ली पर बोझ कम करने के लिए सरकार के विभिन्न अंगों को अलग-अलग शहरों में स्थानांतरित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए:

  • प्रशासनिक राजधानी: नई दिल्ली बनी रह सकती है।
  • न्यायिक राजधानी: सुप्रीम कोर्ट को मध्य या दक्षिण भारत के किसी शहर में स्थानांतरित किया जा सकता है।
  • विधायी राजधानी: संसद के सत्र वर्ष के कुछ समय के लिए किसी दूसरे शहर में आयोजित किए जा सकते हैं।

यह दृष्टिकोण कम खर्चीला है और देश के विभिन्न क्षेत्रों को सत्ता के केंद्र से जुड़ने का एहसास भी कराएगा।

यह स्पष्ट है कि दिल्ली की बढ़ती समस्याएँ एक राष्ट्रीय चिंता का विषय हैं और राजधानी के विकेंद्रीकरण पर विचार करना आवश्यक है।

भारत के लिए आगे का रास्ता शायद एक नया शहर बनाने, किसी मौजूदा शहर को अपग्रेड करने या फिर प्रशासनिक कार्यों को कई शहरों में वितरित करने का एक मिला-जुला मॉडल हो सकता है। यह निर्णय भारत के अगले 100 वर्षों के शहरी नियोजन और संघीय शासन की दिशा तय करेगा।

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GyanOK
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