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क्या कोई देश दूसरे मुल्क की करेंसी को बना सकता है अपनी मुद्रा? जानें ‘डॉलराइजेशन’ का पूरा खेल और इसके पीछे की वजह

जब किसी देश का अपना पैसा 'कागज' बन जाए, तो क्या विदेशी मुद्रा उसे बचा सकती है? जानें क्या है 'डॉलराइजेशन' का वह दिलचस्प खेल, जहाँ देश अपनी पहचान छोड़ अमेरिकी डॉलर या यूरो को अपनाते हैं। स्थिरता की चाहत या मजबूरी? इस आर्थिक रणनीति के पीछे के अनसुने सच को यहाँ विस्तार से समझें!

By Pinki Negi

क्या कोई देश दूसरे मुल्क की करेंसी को बना सकता है अपनी मुद्रा? जानें 'डॉलराइजेशन' का पूरा खेल और इसके पीछे की वजह
करेंसी

जब किसी देश की अपनी करेंसी (मुद्रा) की कीमत बहुत तेजी से गिरने लगती है और लोग उस पर भरोसा करना छोड़ देते हैं, तब सरकारें एक बड़ा फैसला लेती हैं। वे अपने देश की मुद्रा को हटाकर किसी दूसरे शक्तिशाली देश की करेंसी (जैसे अमेरिकी डॉलर या यूरो) को अपने यहाँ आधिकारिक लेन-देन (Legal Tender) के लिए अपना लेती हैं। अर्थशास्त्र की भाषा में इस प्रक्रिया को डॉलराइजेशन (Dollarization) या यूरोइजेशन कहा जाता है। यह कदम अर्थव्यवस्था को स्थिरता देने और महंगाई पर काबू पाने के लिए एक व्यावहारिक समाधान के रूप में उठाया जाता है।

बेकाबू महंगाई से बचने के लिए विदेशी मुद्रा का सहारा

किसी देश द्वारा विदेशी करेंसी को अपनाने का सबसे बड़ा कारण वहां की बेलगाम महंगाई होती है। जब चीजों की कीमतें इतनी तेजी से बढ़ती हैं कि स्थानीय मुद्रा की वैल्यू लगभग खत्म हो जाती है, तब लोग अपनी ही करेंसी पर भरोसा खो देते हैं। ऐसी स्थिति में व्यापार करना और पैसे बचाना नामुमकिन हो जाता है। तब सरकारें अमेरिकी डॉलर जैसी स्थिर करेंसी को अपनाती हैं, ताकि कीमतों में स्थिरता आए और लोगों की खरीदारी करने की शक्ति (Purchasing Power) सुरक्षित रह सके। यह कदम डूबती अर्थव्यवस्था को सहारा देने और बाजार में दोबारा भरोसा जगाने के लिए उठाया जाता है।

आर्थिक संकट और विदेशी कर्ज से निपटने का मजबूत रास्ता

छोटी या संकटग्रस्त अर्थव्यवस्थाएं अक्सर खुद को पूरी तरह बर्बाद होने से बचाने के लिए विदेशी मुद्रा का सहारा लेती हैं। जब किसी देश का विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने लगता है और वह अपना अंतरराष्ट्रीय कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाता है, तो उसकी अपनी करेंसी ढहने की कगार पर पहुँच जाती है। ऐसी स्थिति में अमेरिकी डॉलर जैसी वैश्विक मुद्रा को अपनाने से अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का भरोसा बढ़ता है कि यहाँ महंगाई नियंत्रण में रहेगी। यह कदम न केवल आयात (Import) को सुचारू बनाए रखने में मदद करता है, बल्कि देश को पूरी तरह आर्थिक पतन (Economic Collapse) से बचाकर वित्तीय स्थिरता प्रदान करता है।

विदेशी मुद्रा अपनाने के फायदे और चुनौतियाँ

व्यापार को सुगम बनाने और विनिमय दर (Exchange Rate) के जोखिम को कम करने के लिए कई देश अपने प्रमुख व्यापारिक साझेदार की करेंसी को अपना लेते हैं। हालांकि, इससे आर्थिक स्थिरता तो आती है, लेकिन उस देश को एक भारी कीमत भी चुकानी पड़ती है।

विदेशी मुद्रा अपनाने के बाद देश अपनी ‘मौद्रिक नीति’ (Monetary Policy) पर नियंत्रण खो देता है। इसका मतलब है कि वह देश अब अपनी जरूरत के अनुसार न तो नए नोट छाप सकता है, न ब्याज दरों में बदलाव कर सकता है और न ही मंदी के समय अपनी मुद्रा की वैल्यू कम (Devaluation) कर सकता है। सरल शब्दों में, उस देश की पूरी अर्थव्यवस्था दूसरे देश के केंद्रीय बैंक के फैसलों पर निर्भर हो जाती है।

विदेशी मुद्रा का चयन

किसी दूसरे देश की करेंसी को अपनाना सरकारों के लिए तब ‘अंतिम हथियार’ होता है, जब आर्थिक सुधार के बाकी सभी प्रयास विफल हो जाते हैं। यह कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं है, बल्कि एक अत्यंत जटिल निर्णय है। सरकारें इस कदम को उठाने से पहले इसके नफे-नुकसान का गहराई से आकलन करती हैं। उन्हें एक कठिन चुनाव करना होता है: क्या वे तात्कालिक आर्थिक स्थिरता और महंगाई से राहत चाहते हैं, या फिर वे अपनी आर्थिक नीतियों और मुद्रा पर लंबे समय तक अपना स्वतंत्र नियंत्रण बनाए रखना चाहते हैं। यह फैसला किसी भी देश की भविष्य की आर्थिक दिशा को पूरी तरह बदल सकता है।

Author
Pinki Negi
GyanOK में पिंकी नेगी बतौर न्यूज एडिटर कार्यरत हैं। पत्रकारिता में उन्हें 7 वर्षों से भी ज़्यादा का अनुभव है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत साल 2018 में NVSHQ से की थी, जहाँ उन्होंने शुरुआत में एजुकेशन डेस्क संभाला। इस दौरान पत्रकारिता के क्षेत्र में नए-नए अनुभव लेने के बाद अमर उजाला में अपनी सेवाएं दी। बाद में, वे नेशनल ब्यूरो से जुड़ गईं और संसद से लेकर राजनीति और डिफेंस जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर रिपोर्टिंग की। पिंकी नेगी ने साल 2024 में GyanOK जॉइन किया और तब से GyanOK टीम का हिस्सा हैं।

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